________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नः शि ञ्च 113 // 19 // पदान्तस्थस्य नस्य शे परे ‘ञ्च् वा' स्यात्, अश्वः / भवाञ्च्छूरः, भवाशूरः, भवाञ्शूरः / अश्च इत्येव-भवाश्च्योतति // 19 // __ अतोऽति रोरुः 113 // 20 // आत्परस्य पदान्तस्थस्य रोरति परे ‘उर्नित्यं' स्यात् / कोऽर्थः // 20 // घोषवति / 1 / 3 / 21 // आत्परस्य पदान्तस्थस्य रो?षवति परे 'उः' स्यात् / धर्मो जेता // 21 // अवर्ण-भो-भगो-ऽघोलुंगसन्धिः / 1 / 3 // 22 // अवर्णाद् भो-भगो-अघोभ्यश्च परस्य पदान्तस्थस्य रो?षवति परे 'लुक्' स्यात्, स च न सन्धिहेतुः / देवा यान्ति, भो यासि, भगो हस, अघो वद // 22 // व्योः / 1 / 3 / 23 // अवर्णात्परयोः पदान्तस्थयोर्वययो?षवति परे ‘लुक्' स्यात्, स चाऽसन्धिः / - वृक्षवृश्चम् अव्ययं चाऽऽचक्षाणो वृक्षव, अव्यय; वृक्ष याति, अव्य याति // 23 // ... स्वरे वा // 13 // 24 // अवर्ण-भो-भगो-अघोभ्यः परयोः पदान्तस्थयोर्वययोः स्वरे परे 'लुग् वा' स्यात्, स चाऽसन्धिः / पट इह, पटविह / वृक्षा इह, वृक्षाविह / त आहुः, तयाहुः / तस्मा इदम्, तस्मायिदम् / भो अत्र, भोयत्र / भगो अत्र, भगोयत्र / अघो अत्र, अघोयत्र // 24 // . अस्पष्टाववर्णात्त्वनुनि वा // 1 // 3 // 25 // अवर्ण-भो-भगो-अघोभ्यः परयोः पदान्तस्थयोर्वययोः, अस्पष्टौ - 'ईषत्स्पृष्टतरौ वयौ' स्वरे परे स्याताम्, अवर्णात्तु परयोोरुञ्वर्जे स्वरे'ऽस्पष्टौ वा' स्याताम् / पटवू, असा, कयु, देवायँ भोयँत्र, भगोयँत्र, अघोपॅत्र / अवर्णा -