________________ - 20 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अपदान्तस्थानां म-नानां, धुटि वर्गे परे 'निमित्तस्यैवान्त्यो'ऽनु स्यात् / गन्ता, शङ्किता, कम्पिता / धुडितिकिम् ? आहन्महे / धुड्वर्ग इति किम् ? गम्यते / अपदान्त इति किम् ? भवान् करोति // 39 // शिड्ढेऽनुस्वारः / 13 / 40 // अपदान्तस्थानां म्नां शिटि हे च परेऽनुस्वारो'ऽनु स्यात् / पुंसि, दंशः, बृंहणम् // 40 // रो रे लुगू दीर्घश्चाऽदिदुतः / / 3 / 41 // रस्य रे परेऽनु 'लुक्' स्यात्, 'अ-इ-ऊनाञ्च दीर्घः' / पुना रात्रिः, अग्नी रथेन, पटू राजा / अनु इत्येव - अहोरूपम् / / 41 // ढस्तड्ढे / 1 / 3 / 42 // तन्निमित्ते ढे परे ढस्याऽनु 'लुक्' स्यात्, दीर्घश्चादिदुतः / माढिः, लीढम् गूढम् / तड्ढ इति किम् ? मधुलिड् ढौकते // 42 // सहि-वहेरोचाऽवर्णस्य / 1 / 3 / 43 // सहि-वह्योढस्य तड्ढे परेऽनु'लुक्' स्यात्, ओच्चाऽवर्णस्य / सोढा, वोढा, उदवोढाम् // 43 // उदः स्था-स्तम्भः सः / 113 // 44 // उदः परयोः स्था-स्तम्भोः सस्य ‘लुक्' स्यात् / उत्थाता, उत्तम्भिता // 44 // तदः सेः स्वरे पादार्था / 1 / 3 / 45 // तदः परस्यः सेः स्वरे परे 'लुक् स्यात्, सा चेत् पादपूरणी स्यात् / सैष दाशरथी रामः,सैष राजा युधिष्ठिरः / पादार्था इति किम् ? स एष भरतो राजा // 45 // एतदश्च व्यञ्जनेऽनग-नसमासे 1113 / 46 // एतदस्तदश्च परस्य सेर्व्यञ्जने परे ‘लुक्' स्यात्, अकि नसमासे न / एष दत्ते