________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अनकारान्तस्य नपुंसकस्य 'स्यमोलुप्' स्यात् / कर्तृ, पयः / / 59 // जरसो वा / 1 / 4160 // जरसन्तस्य नपुंसकस्य ‘स्यमोलुंब् वा' स्यात् / अतिजरः, अतिजरसम्, अतिजरम् // 60 // नामिनो लुग वा 11461 // नाम्यन्तस्य नपुंसकस्य 'स्यमोलुंग या' स्यात् / हे वारे !, हे वारि ! / प्रियतिस्, प्रियत्रि कुलम् // 6 // वाऽन्यतः पुमांष्टादौ स्वरे / 1 / 4 / 62 // अन्यतो- विशेष्यवशानपुंसको नाम्यन्तष्टादी स्वरे परे 'वद् वा' स्यात् / ग्रामण्या ग्रामणिना कुलेन; कोंः कर्तृणोः कुलयोः / अन्यत इति किम् ? पीलुने फलाय / टादाविति किम्? शुचिनी कुलें / नपुंसक इत्येव कल्याण्यै स्त्रियै // 62 // दथ्यस्थिसक्थ्यक्ष्णोऽन्तस्याऽन् / 1 / 4 / 63 // एषां नपुंसकानां नाम्यन्तानामन्तस्य टादौ स्वरे परे अन् स्यात् / दध्ना, अतिदना / अस्ना, अत्यस्य्ना / सक्ना, अतिसक्ना / अक्ष्णा, अत्यक्ष्णा // 63 // ___ अनामस्वरे नोऽन्तः // 1 / 4 / 64 // नाम्यन्तस्य नपुंसकस्याऽऽम्वर्जे स्यादी स्वरे परे 'नोऽन्तः' स्यात् / वारिणी, वारिणः / कर्तृणी, कर्तृणः प्रियतिसृणः / अनामिति किम् ? वारीणाम् / स्वर इति किम् ? हे वारे ! / स्यादावित्येव-तौम्बुरवं चूर्णम् // 64 // स्वराच्छौ // 1 // 4 // 65 // शौ परे स्वरान्तानपुंसकात्परो 'नोऽन्तः' स्यात् / कुण्डानि / स्वरादिति किम् ? चत्वारि // 65 // पुटां प्राक् // 1 // 4 // 66 //