________________ 292 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् | 1451 वुडत् उत्सर्गे च / 1426 कुटत् कौटिल्ये / . | 1452 वुड 1453 श्रृंडत् संघाते / 1427 गुंत् पुरीषोत्सर्गे / 1454 दुड 1455 हुड 1428 ,त् गति-स्थैर्ययोः / 1456 त्रुडत् निमज्जने / 1429 णूत् स्तवने / 1457 चुणत् छेदने / 1430 धूतु विधूनने / 1458 डिपत् क्षेपे / 1431 कुचत् संकोचने / . | 1459 छुरत् छेदने / 1432 व्यचत् व्याजीकरणे / | 1460 स्फुरत् स्फुरणे / 1433 गुजत् शब्दे / 1461 स्फुलत् संचये च / 1434 घुटत् प्रतीघाते / // इति परस्मैभाषाः // 1435 चुट 1436 छुट 1437 त्रुटत् छेदने / 1462 कुंङ् 1463 कूङ्त् शब्दे / 1438 तुटत् कलहकर्मणि / 1464 गुरैति उद्यमे / 1439 मुटत् आक्षेप-प्रमर्दनयोः / 1440 स्फुटत् विकसने / | // वृत कुटादिः // 1441 पुट 1442 लुठत् संश्लेषणे / [डान्तोऽयनित्यन्ये / ] 1465 पृङ्त् व्यायामे / 1443 कृडत् घसने / 1466 इंइत् आदरे / 1444 कुडत् बाल्ये च / 1467 धुंङ्त् स्थाने / 1445 गुडत् रक्षायाम् / 1468 ओविजैति भय-चलनयोः / 1446 जुडत् बन्धने / 1469 ओलजैङ् 1447 तुडत् तोडने / 1470 ओलस्पैति व्रीडें / 1448 लुड 1449 थुड 1471 ष्वजित् सङ्गे / 1450 स्थुडत् संवरणे / 1472 जुषेति प्रीति-सेवनयोः / /