________________ .. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 293 // इति आत्मनेभाषाः // 1490 कृतप् वेष्टने / 1491 उन्दैप् क्लेदने / // इति तुदादयस्तितो धातवः // 1492 शिष्लंप् विशेषणे / 1473 रु,पी आवरणे / 1493 पिप्लंप संचूर्णने / 1474 रिचंपी विरेचने / 1494 हिसु 1495 तृहप् हिंसा१४७५ विचूपी पृथग्भावे / याम् / 1476 युजूपी योगे / ... | // इति परस्मैभाषाः / 1477 भिदंपी विदारणे / 1478 छिद्पी द्वैधीकरणे। . | 1496 खिदिप दैन्ये / 1479 क्षुदंपी संपेषे / 1497 विदिप विचारणे / 1480 ऊछुपी दीप्ति-देवनयोः / | 1498 जिइन्धैपि दीप्तौ / 1481 ऊतृदूपी हिंसा-ऽनादरयोः / // इति आत्मनेभाषाः // // इति उभयतोभाषाः // // इति रुपादयः पितो धातवः // 1482 पृचैप् संपर्के / 1499 तनूयी विस्तारे / 1483 वृचैप वरणे / 1500 षणूयी दाने / 1484 तञ्बू 1485 तौर 1501 क्षणूग् 1502 क्षिणूयी संकोचने / हिंसायाम् / 1486 भओंप आमर्दने / 1503 ऋणूयी गतौ / 1487 भुजंप् पालना-ऽभ्यवहा- | 1504 तृणूयी अदने / . रयोः / / 1505 घृणूयी दीप्तौ / 1488 अौप व्यक्ति-प्रक्षण- // इति उभयतोभाषाः // __गतिषु / 1489 ओविजैप भय-चलनयोः / / 1506 वनूयि याचने /