________________ 42 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् नान्यत् / 2 / 1 // 27 // युष्मदस्मद्भ्यां पूर्वं जसन्तादन्यदामन्त्र्यं विशेष्यमामन्त्र्ये तद्विशेषणे परेऽसदिव न' स्यात् / साधो सुविहित ! त्वा शरणं प्रपद्ये / साधो सुविहित ! मा रक्ष // 27 // पादायोः / 2 / 128 // नियतपरिमाणमात्राक्षरपिण्डः पादः / पदात् परयोः पादस्यादिस्थयोर्युष्मदस्मदो ‘र्वस्-नसादिर्न स्यात् / . ___ “वीरो विश्वेश्वरो देवो युष्माकं कुलदेवता / स एव नाथो भगवानस्माकं पापनाशनः // 1 // " पादाद्योरिति किम् ? “पान्तु वो देशनाकाले जैनेन्द्रा दशनांशवः / भवकूपपतज्जन्तुजातोद्धरणरज्जवः // 2 // " // 28 // चाऽह-ह-वैवयोगे / 2 / 1129 // एभिर्योगे पदात् परयोर्युष्मदस्मदो-'र्वस्-नसादिर्न' स्यात् / ज्ञानं युष्मांश्च रक्षतु, अस्मांश्च रक्षतु / एवं अह-ह-वा-एवैरप्युदाहार्यम् / योग इति किम् ? ज्ञानञ्च शीलञ्च ते स्वम् // 29 // दृश्यथैश्चिन्तायाम् / 2 / 1 // 30 // दृशिना समानार्थेश्चिन्तार्थैर्धातुभिर्योगे युष्मदस्मदो-स्-नसादिर्न' स्यात् / जनो युष्मान् सन्दृश्यागतः, जनोऽस्मान् सन्दृश्यागतः / जनो युवां समीक्ष्यागतः, जन आवां समीक्ष्यागतः / जनस्त्वामपेक्षते, जनो मामपेक्षते / सर्वत्र मनसा चिन्तनं दृश्यर्थानामर्थः / दृश्यथैरिति किम् ? जनो वो मन्यते / चिन्तायामिति किम् ? जनो वः पश्यति // 30 // . नित्यमन्वादेशे / 2 / 1 / 31 // .