________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् सहते / आदेरित्येव - लषति / ष्ट्यादिवर्जनं किम् ? ष्ट्यायति, ष्ठीव्यति, ष्वष्कते // 98 // . ऋ-र ल-लं कृपोऽकृपीटादिषु / 2 / 3 / 99 // 'कृपेक़त लत्, रस्य च ल् स्यात्, न तु कृपीटादिविषयस्य / क्लप्यते, क्लप्तः; कल्पते, कल्पयति / अकृपीटादिष्विति किम् ? कृपीटम्, कृपाणः // 99 / / उपसर्गस्या-ऽयौ / 2 / 3 / 100 // उपसर्गस्थस्य ‘रस्याऽयौ धातौ परे ल्' स्यात् / प्लायते, पुत्ययते // 10 // ग्रो यङि / 2 / 3 / 101 // यङि परे गिरते ‘रो ल्' स्यात् / निजेगिल्यते // 101 // नवा स्वरे / 2 / 3 / 102 // ग्रो रः स्वरादौ प्रत्यये परे विहितस्य 'ल् वा' स्यात् / गिलति, गिरति; निगाल्यते, निगार्यते / विहितविशेषणं किम् ? गिरः // 102 // परे-ऽङ्क-योगे / 2 / 3 / 103 // परिस्थस्य रो घादौ परे ‘ल वा' स्यात् / पलिघः, परिघः; पल्यङ्कः, पर्यङ्कः; पलियोगः, परियोगः // 103 // ऋफिडादीनां उश्च लः / 2 / 3 / 104 // एषाम् 'ऋ-रो ल-लौ डस्य च ल् वा' स्यात् / लफिडः, लफिलः; ऋफिडः, ऋफिलः; लतकः, ऋतकः; कपलिका, कपरिका // 104 // जपादीनां पो वः / 2 / 3 / 105 // एषाम् ‘पो वो वा' स्यात् / जवा, जपा; पारावतः, पारापतः / / 105 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन लघुवृत्तौ द्वितीयस्याध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः / 2 / 3 //