________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् देशेऽन्तरोऽयन-हनः / 2 / 3 / 91 // अन्तःशब्दात्परस्याऽयनस्य हन्तेश्च 'नो देशेऽर्थे ण् न' स्यात् / अन्तरयनोऽन्तर्हननो वा देशः / देश इति किम् ? अन्तरयणम्, अन्तर्हण्यते // 91 // षात् पदे / 2 / 3 / 92 // पदे परतो यः षस्ततः परस्य 'नो ण् न' स्यात् / सर्पिष्मानम् / पद इति किम् ? सर्पिष्केण // 92 // पदेऽन्तरेऽनाऽऽङ्वतद्धिते / 2 / 3 / 93 // आङन्तं तद्धितान्तं च मुक्त्वाऽन्यस्मिन् पदे निमित्त-कार्यिणोरन्तरे 'नो ण् न' स्यात् / प्रावनद्धम्, रोषभीममुखेन / अनाङीति किम् ? प्राणद्धम् / अतद्धित इति किम् ? आर्द्रगोमयेण // 13 // हनो घि 2 / 3 / 94 // हन्ते! घि निमित्तकार्यिणोरन्तरे सति ‘ण् न' स्यात् / शत्रुघ्नः // 94 // नृतेर्यङि / 2 / 3 / 95 // नृते! यविषये ‘ण न' स्यात् / नरीनृत्यते, नरिनर्ति / यङीति किम् ? हरिणी नाम कश्चित् // 95 // क्षुभ्नादीनाम् / 2 / 3 / 96 // एषाम् ‘नो ण् न' स्यात् / क्षुम्नाति, आचार्यानी // 16 // पाठे धात्वादेर्णो नः / 2 / 3 / 97 // पाठे धात्वादे- 'र्णो नः' स्यात् / नयति / पाठ इति किम् ? णकारीयति / आदेरिति किम् ? भणति // 97 / / षः सोऽष्ट्रयै-ष्ठिव-प्वष्कः / / 3 / 98 // पाठे धात्वादेः 'षः सः' स्यात्, न तु ष्ट्यै-ष्ठिव-ष्वष्का सम्बन्धी स्यात् /