________________ 160 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // का-कवौ वोष्णे / 3 / 2 / 137 // . . उष्णे उत्तरपदे 'कोः का-कवी वा' स्याताम् / कोष्णम्, कवोष्णम् / पक्षे यथाप्राप्तमिति तत्पुरुषे - कदुष्णम् / बहुव्रीहौ - कूष्णो देशः / / 137 / / कृत्येऽवश्यमो लुक् / 3 / 2 / 138 // कृत्यान्ते उत्तरपदे 'ऽवश्यमो लुक्' स्यात् / अवश्यकार्यम् / कृत्य इति किम् ? अवश्यंलावकः // 138 // . समस्तत-हिते वा / 3 / 2 / 139 // तते हिते चोत्तरपदे ‘समो लुग् वा' स्यात् / सततम्, सन्ततम्; सहितम्, संहितम् // 139 // तुमश्च मनः कामे / 3 / 2 / 140 // 'तुम्-समोर्मनसि कामे चोत्तरपदे लुक्' स्यात् / भोक्तुमनाः, गन्तुकामः; समनाः, सकामः // 140 // मांसस्याऽनपत्रि पचि नवा / 3 / 2 / 141 // अनघञन्ते पचावुत्तरपदे ‘मांसस्य लुग् वा' स्यात् / मांस्पचनम्, मांसपचनम्; मांस्पाकः, मांसपाकः // 141 // दिक्शब्दात् तीरस्य तारः / 3 / 2 / 142 // अस्मात् परस्य 'तीरस्योत्तरपदस्य तारो वा' स्यात् / दक्षिणतारम्, दक्षिणतीरम् // 142 // सहस्य सोऽन्यार्थे / 3 / 2 / 143 // . उत्तरपदे परे ‘बहुव्रीही सहस्य सो वा' स्यात् / सपुत्रः, सहपुत्रः / अन्यार्थ इति किम् ? सहजः // 143 // 'नाम्नि / 3 / 21144 //