________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 159 अप्राणिन्यर्थे 'नगो वा निपात्यते' / नगः, अगो गिरिः / अप्राणिनीति किम् ? अगोऽयं शीर्तन // 127 // नखादयः / 3 / 2 / 128 // एते ‘अकृताऽकाराद्यदेशा निपात्यन्ते' / नखः, नासत्यः // 128 // अन् स्वरे / 3 / 2 / 129 // स्वरादावुत्तरपदे 'नोऽन्' स्यात् / अनन्तो जिनः / / 129 / / कोः कत्तत्पुरुषे / 3 / 2 / 130 // स्वरादावुत्तरपदे 'कोस्तत्पुरुषे कद्' स्यात् / कदश्वः / तत्पुरुष इति किम् ? कूष्ट्रो देशः / स्वर इत्येव- कुब्राह्मणः // 130 // रथ-वदे / 3 / 2 / 131 // रये वदे चोत्तरपदे 'कोः कद्' स्यात् / कद्रथः, कद्वदः // 131 // तृणे जातौ / 3 / 2 / 132 // जातावर्थे तृणे उत्तरपदे 'कोः कद्' स्यात् / कतृणा रौहिषाख्या तृणजातिः // __ कत्त्रिः / 3 / 2 / 133 // 'कोः किमो वा त्रावुत्तरपदे कद्' स्यात् / कत्त्रयः // 133 // काऽक्ष-पथोः / 3 / 2 / 134 // अनयोरुत्तरपदयोः 'कोः का' स्यात् / काऽक्षः, कापथम् // 134 // पुरुषे वा / 3 / 2 / 135 // पुरुषे उत्तरपदे 'कोः का वा' स्यात् / कापुरुषः, कुपुरुषः // 135 // अल्पे / 3 / 2 / 136 // 'ईषदर्थस्य कोरुत्तरपदे का' स्यात् / कामधुरम्, काऽच्छम् // 136 //