________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् अङ्गुष्ठः, मञ्जिष्ठः, पुञ्जिष्ठः, बर्हिष्ठः, परमेष्ठः, दिविष्ठः // 30 // निर्दुस्सोः सेध-सन्धि-साम्नाम् / 2 / 3 / 31 // एभ्यः परेषां सेधादीनां सः समासे 'ष' स्यात् / निःषेधः, दुःषेधः, सुषेधः; निःषन्धिः, दुःषन्धिः, सुषन्धिः, निःषाम, दुःषाम, सुषाम // 31 // प्रष्ठोऽग्रगे / 2 / 3 // 32 // प्रात् स्थस्य सः ‘ष्' स्यात् , अग्रगामिन्यर्थे / प्रष्ठोऽग्रगः // 32 // भीरुष्ठानादयः / 2 / 3 // 33 // एते समासे कृतषत्वाः साधवः स्युः / भीरुष्ठानम्, अङ्गुलिषङ्गः // 33 // हस्वानाम्नस्ति / 2 / 3 / 34 // नाम्नो विहिते तादौ प्रत्यये ह्रस्वान्नामिनः परस्य सः 'ष' स्यात् / सर्पिष्टा, वपुष्टमम् / नामिन इत्येव- तेजस्ता // 34 // निसस्तपेऽनासेवायाम् / 2 / 3 // 35 // निसः सस्तादौ तपतौ परे ‘ष्' स्यात्, पुनः पुनः करणाऽभावे / निष्टपति स्वर्णम् सकृदग्निं स्पर्शयतीत्यर्थः / तीत्येव- निरतपत् // 35 // घस्-वसः / 2 / 3 // 36 // नाम्यादेः परस्य घस्-वसोः सः 'ष' स्यात् / जक्षुः, उषितः // 36 // णि-स्तोरेवाऽस्वद- स्विद-सहः पणि / 2 / 3 / 37 // स्वदादिवर्जानां ण्यन्तानां स्तोरेव च सो नाम्यादेः परस्य षत्वभूते सनि 'ए' स्यात् / सिषेवयिषति, तुष्टूपति / स्वदादिवर्जनं किम् ? सिस्वादयिषति, सिस्वेदयिषति, सिसाहयिषति / एवेति किम् ? सुसूषति / षणीति किम् ? सिषेव / षत्वं किम् ? सुषुप्सति // 37 // .. सजेर्वा // 2 // 3 // 38 //