________________ 168 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // - परि-व्यवात क्रियः / 3 / 3 // 27 // एभ्य उपसर्गेभ्यः परात् क्रीणातेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / परिक्रीणीते, विक्रीणीते, अवक्रीणीते / उपसर्गादित्येव- उपरिक्रीणाति // 27 // परा-वेर्जेः / 3 / 3 / 28 // आभ्यां पराज्जयतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / पराजयते, विजयते / उपसर्गाभ्यामित्येव- बहुवि जयति वनम् // 28 // समः क्ष्णोः / 3 / 3 / 29 // समः परात् क्ष्णौतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संक्ष्णुते शस्त्रम् / सम इति किम् ? क्ष्णौति / उपसर्गादित्येव- आयसं क्ष्णौति // 29 // अपस्किरः / 3 / 3 // 30 // अपात् किरतेः सस्सट्कात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अपस्किरते वृषभो हृष्टः / सस्सट्कनिर्देशः किम् ? अपकिरति / अपेति किम् ? उपस्किरति // 30 // उदश्चरः साप्यात् / 3 // 3 // 31 // उत्पूर्वाच्चरेः सकर्मकात् - 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / मार्गमुच्चरते / साप्यादिति किम् ? धूम उच्चरति // 31 // समस्तृतीयया // 3 // 3 // 32 // सम्पूर्वाञ्चरेस्तृतीयान्तेन योगे ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अश्वेन सञ्चरते / तृतीययेति किम् ? उभौ लोकौ सञ्चरसि // 32 // क्रीडोऽकूजने // 3 // 3 // 33 // कूजनम्- अव्यक्तः शब्दः, ततोऽन्यार्थात् संपूर्वात् क्रीडतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संक्रीडते / सम इत्येव- क्रीडति / अकूजन इति किम् ? संक्रीडन्त्यनांसि // 33 //