________________ 248 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् - ___ अघक्यबलच्यजेवीं / 4 / 4 / 2 // अघजादावशिति विषये 'अजेवीं' स्यात् / प्रवेयम् / अघक्यबलचीति किम् ? समाजः, समज्या, उदजः, अजः पशुः // 2 // __ त्रने वा / 4 / 4 // 3 // .. 'त्रनयोर्विषयभूतयोरजेवीं वा' स्यात् / प्रवेता, प्राजिता; प्रवयणः, प्राजनो दण्डः // 3 // चक्षो वाचि. कशांग-ख्यांग / 4 / 4 / 4 // चक्षो वागर्थस्याऽशिति विषये 'क्शांग्-ख्यांगौ' स्याताम् / आक्शास्यति, आक्शास्यते; आख्यास्यति, आख्यास्यते; आक्शेयम्, आख्येयम् / वाचीति किम् ? बोधे विचक्षणः // 4 // नवा परोक्षायाम् / 4 / 4 / 5 // चक्षो वाचि ‘क्शांग्-ख्यांगौ परोक्षायां वाः स्याताम् / आचक्शी, आचख्यौ, आचचक्षे // 5 // . भृज्जो भ“ / 4 / 46 // भृज्जतेरशिति 'भर्ख वा' स्यात् / भा, भ्रष्टा // 6 // प्राद् दागस्त आरम्भे क्ते / 4 / 47 // आरम्भार्थस्य प्रपूर्वस्य दागः क्ते परे 'त्तो वा' स्यात् / प्रत्तः, प्रदत्तः / प्रादिति किम् ? परीत्तम् // 7 // नि-वि-स्वन्ववात् / 4 / 48 // एभ्यः परस्य दागः क्ते 'तो वा' स्यात् / नीत्तम्, निदत्तम्; वीत्तम्, विदत्तम्; सूत्तम्, सुदत्तम्; अनूत्तम्, अनुदत्तम्;अवत्तम्, अवदत्तम् // 8 // स्वरादुपसर्गाद् दस्ति कित्यधः / 4 / 4 // 9 //