________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 249 स्वरान्तादुपसर्गात् परस्य. धावर्जस्य दासंज्ञस्य तादौ किति 'त्तो नित्यम्' स्यात् / प्रत्तः, परीत्रिमम् / उपसर्गादिति किम् ? दधि दत्तम् / स्वरादिति किम् ? निर्दत्तम् / द इति किम् ? प्रदाता व्रीहयः / तीति किम् ? प्रदाय / अध इति किम् ? निधीतः // 9 // दत् / 4 / 4 / 10 // अधो दासंज्ञस्य तादौ किति 'दत्' स्यात् / दत्तः, दत्तिः / अध इत्येवधीतः // 10 // दो-सो-मा-स्थ इः / 4 / 4 / 11 // एषां तादी किति 'इ:' स्यात् / निर्दितः, सित्वा, मितिः, स्थितवान् // 11 // छा-शोर्वा / 4 / 4 / 12 // छ-शोस्तादौ किति 'इर्वा' स्यात् / अवच्छितः, अवच्छातः; निशितः, निशातः // 12 // शो व्रते / 4 / 4 / 13 // श्यतेः क्ते व्रतविषये प्रयोगे नित्यम् 'इ:' स्यात् / संशितं व्रतम्, संशितः साधुः // 13 // हाको हिः क्वि / 4 / 4 / 14 // हाकस्तादौ किति क्त्वायाम् 'हिः' स्यात् / हित्वा / क्त्वीति किम् ? हीनः / तीत्येव- प्रहायः // 14 // - धागः / 4 / 4 / 15 // धागस्तादौ किति 'हिः' स्यात् / विहितः, हित्वा // 15 // - यपि चाऽदो जग्धू / 4 / 4 / 16 // तादी किति यपि चा-'ऽदेर्जग्ध्' स्यात् / जग्धिः, प्रजग्ध्य // 16 //