________________ 152 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // एषां गिरावुत्तरपदे 'नाम्नि दीर्घः' स्यात् / अञ्जनागिरिः, कुक्कुटागिरिः / अनजिरादिबहुस्वर-शरादीनां मतौ / 3 / 2 / 78 // अजिरादिवर्जबहुस्वराणां शरादीनां च मती प्रत्यये 'नाम्नि दीर्घः' स्यात् / उदुम्बरावती, शरावती, वंशावती / अनजिरादीति किम् ? अजिरवती, हिरण्यवती // 78 // ऋषौ विश्वस्य मित्रे / 3 / 279 // ऋषावर्थे मित्रे उत्तरपदे विश्वस्य 'नाम्नि दीर्घः' स्यात् / विश्वामित्रः // नरे / 3 / 2 / 80 // नरे उत्तरपदे 'नाम्नि विश्वस्य दीर्घः' स्यात् / विश्वानरः कश्चित् // 8 // वसु-राटोः / 3 / 2 / 81 // अनयोरुत्तरपदयोर्विश्वस्य 'दीर्घः' स्यात् / विश्वावसुः, विश्वाराट् // 81 // वलच्यपित्रादेः / 3 / 2 / 82 // वलच्प्रत्यये पित्रादिवर्जानाम् 'दीर्घः' स्यात् / आसुतीवल: / अपित्रादेरिति किम् ? पितृवलः, मातृवलः // 82 // चितेः कचि / 3 / 2 / 83 // चितेः कचि 'दीर्घः' स्यात् / एकचितीकः // 83 // स्वामिचिह्नस्याऽविष्टा-ऽष्ट-पञ्च-भिन्न-च्छिन्न-च्छिद्र- सुव स्वस्तिकस्य कर्णे / 3 / 2 / 84 // स्वामी चिन्यते येन तद्वाचिनो विष्टादिवर्जस्य कर्णे उत्तरपदे 'दीर्घः' स्यात् / दात्राकर्णः पशुः / स्वामिचिह्नस्येति किम् ? लम्बकर्णः / विष्टादिवर्जन किम् ? विष्टकर्णः, अष्टकर्ण इत्यादि // 84 // .. गति-कारकस्य नहि-वृति-वृषि-व्यधि-रुचि-सहि-तनौ क्वौ