________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 151 जातीयैकार्थेऽच्वेः / 3 / 2170 // 'महतोऽव्यन्तस्य जातीयरि एकार्थे चोत्तरपदे डाः' स्यात् / महाजातीयः महावीरः / जातीयैकार्थे इति किम् ? महत्तरः / अच्वेरिति किम् ? महद्भूता कन्या // 70 // न पुम्वनिषेधे / 3 / 271 // 'महतः पुम्वनिषेधविषये उत्तरपदे डा न' स्यात् / महतीप्रियः // 71 // इच्यस्वरे दीर्घ आच / 3 / 2 / 72 // 'इजन्तेऽस्वरादावुत्तरपदे पूर्वपदस्य दीर्घत्वम् आच्च' स्यात् / मुष्टीमुष्टि, मुष्टामुष्टि / अस्वर इति किम् ? अस्यसि // 72 // हविष्यष्टनः कपाले / 3 / 2 / 73 // 'हविष्यर्थे कपाले उत्तरपदेऽष्टनो दीर्घः' स्यात् / अष्टाकपालं हविः / हविषीति किम् ? अष्टकपालम् / कपाल इति किम् ? अष्टपात्रं हविः // 73 // गवि युक्ते / 3 / 274 // 'युक्तेऽर्थे गव्युत्तरपदेऽष्टनो दीर्घः' स्यात् / अष्टागवं शकटम् / युक्त इति किम् ? अष्टमुश्चैत्रः // 74 // . नाम्नि / 3 / 275 // 'अष्टन उत्तरपदे संज्ञाया दीर्घः' स्यात् / अष्टापदः कैलाशः / नाम्नीति किम् ? अष्टदंष्ट्रः // 75 // कोटर-मिश्रक-सिध्रक-पुरग-सारिकस्य वणे / 3 / 276 // एषां कृतणत्वे वने उत्तरपदे ‘संज्ञायां दीर्घः' स्यात् / कोटरावणम्, मिश्रकावणम्, सिध्रकावणम्, पुरगावणम्, सारिकावणम् // 76 // अञ्जनादीनां गिरौ / 3 / 277 //