________________ 150 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // - यः / 3 / 2 / 64 // झ्यन्तायाः परतः स्त्रियास्तरादिषु प्रत्ययेषु ब्रुवादिषु चोत्तरपदेषु एकार्थेषु 'ह्रस्वः' स्यात् / गौरितरा, गौरितमा, नर्तकिरूपा, कुमारिकल्पा, ब्राह्मणिब्रुवा, गार्गिचेली, ब्राह्मणिगोत्रा, गार्गिमता, गौरिहता // 64 // भोगवद्-गौरिमतोम्नि / 3 / 2 / 65 // अनयोयन्तयोः संज्ञायां तरादिषु प्रत्ययेषु ब्रुवादौ चोत्तरपदे एकार्थे 'हस्वः' स्यात् / भोगवतितरा, गौरिमतितमा, भोगवतिरूपा, गौरिमतिकल्पा, भोगवतिब्रुवा, गौरिमतिचेली, भोगवतिगोत्रा, गौरिमतिमता, भोगवतिहता / नाम्नीति किम् ? भोगवतितरा, भोगवत्तरा, भोगवतीतरा // 65 // नवैकस्वराणाम् / 3 / 2 / 66 // एकस्वरस्य ङ्यन्तस्य तरादौ प्रत्यये ब्रुवादौ चोत्तरपदे स्त्र्येकार्थे 'वा ह्रस्वः' स्यात् / स्त्रितरा, स्त्रीतरा; ज्ञितमा, ज्ञीतमा, ज्ञिब्रुवा, ज्ञीब्रुवा / एकस्वराणामिति किम् ? कुटीतरा // 66 // ऊङः / 3 / 2 / 67 // ऊङन्तस्य तरादौ ब्रुवादी चोत्तरपदे स्त्र्येकार्थे 'वा ह्रस्वः' स्यात् / ब्रह्मबन्धुतरा, बह्मबन्धूतरा; कद्रुब्रुवा, कद्रूबुवा // 67 // महतः कर-घास-विशिष्टे डाः / 3 / 2 / 68 // करादावुत्तरपदे ‘महतो डा वा' स्यात् / महाकरः, महत्करः; महाघासः, महद्घासः; महाविशिष्टः, महद्विशिष्टः // 68 // स्त्रियाम् / 3 / 2 / 69 // . स्त्रीवृत्तेर्महतः करादावुत्तरपदे 'नित्यं डाः' स्यात् / महाकरः, महाघासः, महाविशिष्टः // 69 //