________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 13 ईचा / अमी अश्वाः // 35 // . चादिः स्वरोऽनाङ् // 1 // 2 // 36 // आवर्जश्चादिः स्वरः स्वरे परे 'असन्धिः' स्यात् / अ अपेहि, इ इन्द्रं पश्य, उ उत्तिष्ठ, आ एवं किल मन्यसे, आ एवं नु तत् / अनाङिति किम् ? आ इहि, एहि // 36 // ओदन्तः 112 // 37 // ओदन्तश्चादिः स्वरे परे 'असन्धिः ' स्यात् / अहो अत्र // 37 // सौ नवेतौ / 12 / 38 // सिनिमित्त ओदन्त इतौ परे 'असन्धिर्वा' स्यात् / पटो इति, पटविति // 38 // ऊँ चोञ् / 1 / 2 // 39 // . उञ् चादिरितौ परे ‘असन्धिर्वा' स्यात्, असन्धौ च उञ् 'ऊँ' इति दीर्घोऽनुनासिको वा स्यात् / उ इति, ऊँ इति, विति // 39 // अञ्वर्गात् स्वरे वोऽसन् 11 / 2 / 40 // अवर्जवर्गेभ्यः परः उञ् स्वरे परे 'वो वा' स्यात्, स चाऽसन् / क्रुङ्वास्ते / क्रुङ् आस्ते / असत्त्वाद् द्वित्वम् // 40 // .. अ-इ-उ-वर्णस्यान्तेऽनुनासिकोऽनीदादेः / / 2 / 41 // अ-इ-उ-वर्णानामन्ते- विरामे 'अनुनासिको वा' स्यात्, न चेदेते 'ईदूदेद्विवचनम्' इत्यादिसूत्रसम्बन्धिनः स्युः / साम, साम / खट्वाँ, खट्वा / दधि, दधि / कुमारी, कुमारी / मधु, मधु / अनीदादेरिति किम् ? अग्नी, अमी, किमु // 41 // इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासन___ लघुवृत्तौ प्रथमस्याध्यायस्य द्वितीयपादः समाप्तः / 1 / 2 // पूर्वभवदारगोपी, - हरणस्मरणादिव ज्वलितमन्युः / श्रीमूलराजपुरुषो, * त्तमोऽवधीद् दुर्मदाऽऽभीरान् / / 2 / / ---xox