________________ 190 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // अश्वत् / कर्तरीत्येव- अधिषातां गावौ वत्सेन // 59 // शास्त्यसू-वक्ति-ख्यातेरङ् // 3 // 4 // 60 // एभ्यः कर्तर्यवतन्याम् 'अङ्' स्यात् / अशिषत्, अपास्थत्, अवोचत्, आख्यत् / कर्तरीत्येव- अशासिषातां शिष्यौ गुरुणा // 60 // सर्त्यतैर्वा // 3 // 4 // 61 // आभ्यां कर्तर्यद्यतन्याम् 'अङ् वा' स्यात् / असरत्, असार्षीत्; आरत्, आर्षीत् // 61 // हा-लिप-सिचः / 3 / 4 / 62 // एभ्यः कर्तर्यद्यतन्याम् 'अङ्' स्यात् / आत्, अलिपत्, असिचत् // 62 // वाऽऽत्मने / 3 / 4 / 63 // ह्वादेः कर्तर्यधतन्यामात्मनेपदे 'वाऽङ्' स्यात् / आह्वत, आह्वास्त; अलिपत, अलिप्त; असिचत, असिक्त // 63 // . लदिद्-युतादि-पुष्यादेः परस्मै / 3 / 4 / 64 // लूदितो घुतादेः पुष्यादेश्च ‘कर्तर्यधतन्यां परस्मैपदेऽङ्' स्यात् / अगमत्; अधुतत्, अरुचत्; अपुषत्, औचत् / परस्मैपद इति किम् ? समगस्त // 64 // ऋदिश्वि-स्तम्भू-मचू-म्लुचू-pचू-ग्लुचू-ग्लुञ्चू जो वा 3 // 465 // ऋदितः श्व्यादेश्च 'कर्तर्यवतन्यां परस्मैपदेऽङ्वा' स्यात् / अरुधत्, अरौत्सीत्। अश्वत्, अश्वयीत्; अस्तभत्, अस्तम्भीत्; अनुचत्, अम्रोचीत्; अम्लुचत्, अम्लोचीत्; अग्रुचत्, अग्रोचीत्; अग्लुचत्, अग्लोचीत्; अग्लुचत्, अग्लुधीत्। अजरत्, अजारीत् // 65 // जिच ते पदस्तलुक् च / 3 / 466 //