________________ 24 श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् (चतुर्थः पादः) अत आः स्यादौ जस्-भ्याम्-ये 11 / 4 / 1 // स्यादौ जसि भ्यामि ये च परेऽकारस्य 'आः' स्यात् / देवाः, आभ्याम्, सुखाय / स्वादाविति किम् ? बाणान् जस्यतीति क्विप् - बाणजः // 1 // भिस ऐस् 1 / 4 / 2 // आत्परस्य स्यादे-'र्भिस ऐस्' स्यात् / देवैः / ऐस्करणाद्-अतिजरसैः // 2 // इदमदसोऽक्येव / 1 / 4 / 3 // इदमदसोरक्येव सति, आत्परस्य 'भिस ऐस्' स्यात् / इमकैः, अमुकैः / अक्येवेति किम् ? एभिः, अमिभिः // 3 // एद् बहुस्भोसि 11 / 4 / 4 // बह्वर्थे स्यादौ सादौ भादौ ओसि च परे ‘अत एत्' स्यात् / एषु, एभिः, देवयोः // 4 // टा-सोरिन-स्यौ / 1 / 4 / 5 // आत्परयोष्टा-ङसोर्यथासङ्ख्यम् ‘इन-स्यौ' स्याताम् / तेन, यस्य // 5 // डे-ङस्योर्याऽऽतौ // 14 // 6 // आत्परस्य डेर्डसेश्च यथासंख्यम् ‘य आच' स्याताम् / देवाय, देवात् // 6 // सदिः स्मै-स्मातौ // 14 // 7 // सर्वादेरदन्तस्य सम्बन्धिनोर्डेङस्योर्यथासंख्यम् 'स्मै-स्माती' स्याताम् / सर्वस्मै, सर्वस्मात् / सर्व, विश्व, उभ, उभयट्, अन्य, अन्यतर, इतर, डतर, डतम, त्व, त्वत्, नेम, सम-सिमौ सर्वार्थी, पूर्व-पराऽवर-दक्षिणोत्तरा-ऽपरा-ऽधराणि व्यवस्थायाम्, स्वम् अज्ञाति-धनाख्यायाम्, अन्तरं बहिर्योगोपसंव्यानयोरपुरि, त्यद्, तद्, यद्, अदस्, इदम्, एतद्, एक, द्वि, युष्मद्, अस्मद्,