________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 113 अनयोरर्थयोरेतौ यथासंख्यम् - ‘गती' स्याताम् / अन्तर्हत्य, अदःकृत्यै - तत्कर्तेति ध्यायति // 5 // कणे-मनस् तृप्तौ / 3 / 116 // एतावव्ययौ तृप्ती गम्यमानायाम् ‘गती' स्याताम् / कणेहत्य मनोहत्य पयः पिबति / तृप्ताविति किम् ? तण्डुलावयवे कणे हत्वा // 6 // पुरोऽस्तमव्ययम् / 3 / 17 // एतावव्ययौ ‘गती' स्याताम् / पुरस्कृत्य, अस्तङ्गत्य / अव्ययमिति किम् ? पुरः कृत्वा- नगरीरित्यर्थः // 7 // गत्यर्थ-वदोऽच्छः / 3 / 118 // अच्छेत्यव्ययं गत्यर्थानां वदश्च धातोः सम्बन्धि ‘गतिः' स्यात् / अच्छगत्य, अच्छोध // 8 // तिरोऽन्तौं / 3 / 1 / 9 // तिरोऽन्तर्धी 'गतिः' स्यात् / तिरोभूय // 9 // कृगो नवा / 3 / 1 / 10 // तिरोऽन्तर्धी कृगः सम्बन्धि ‘गतिर्वा' स्यात् / तिरस्कृत्य, तिरःकृत्य, पक्षे तिरः कृत्वा // 10 // मध्ये-पदे-निवचने-मनस्युरस्यनत्याधाने / 3 / 1 / 11 // अनत्याधानम् - अनुपश्लेषोऽनाश्चर्यं च, तद्वृत्तय एतेऽव्ययाः कृग्योगे 'गतयो वा' स्युः / मध्येकृत्य, मध्ये कृत्वा; पदेकृत्य, पदे कृत्वा; निवचनेकृत्य, निवचने कृत्वा; मनसिकृत्य, मनसि कृत्वा; उरसिकृत्य, उरसि कृत्वा // 11 // - उपाजेऽन्वाजे / 3 / 1 / 12 // एतावव्ययौ दुर्बलस्य भग्नस्य वा बलाधानार्थी कृग्योगे ‘गती वा' स्याताम् /