________________ 298 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / 1695 मूलण रोहणे / - इतोऽर्थविशेषे आलक्षिणः / / 1696 कल 1697 किल 1720 ज्ञाण मारणादिनियोजनेषु / 1698 पिलण् क्षेपे / 1721 च्युण सहने / 1699 पलण रक्षणे / 1722 भूण अवकल्कने / 1700 इलण् प्रेरणे / 1723 बुक्कण भषणे / 1701 चलण् भृतौ / 1724 रक 1725 लक। 1702 सान्त्वण सामप्रयोगे / * * | 1726 रग 1727 लगण् 1703 धूशण कान्तीकरणे / ... आस्वादने / 1704 श्लिषण श्लेषणे / 1728 लिगुण चित्रीकरणे / 1705 लूषण हिंसायाम् / 1729 चर्चण अध्ययने / 1706 रुषण रोषे / 1730 अञ्चण विशेषणे / 1707 प्युषण उत्सर्गे / 1731, मुचण प्रमोचने / 1708 पसुण नाशने / 1732 अर्जण् प्रतियले / 1709 जसुण रक्षणे / 1733 भजण् विश्राणने / 1710 पुंसण् अभिमर्दने / 1734 चट 1735 स्फुटण भेदे / / 1711 ब्रूस 1712 पिस | 1736 घटण संघाते / 1713 जस 1714 बर्हण् (हन्त्यर्थाश्च) हिंसायाम् / | 1737 कणण निमीलने / 1715 प्लिहण स्नेहने / 1738 यतण निकारोपस्कारयोः / 1716 म्रक्षण म्लेच्छने / (निरश्च प्रतिदाने ) 1717 भक्षण अदने / 1739 शब्दण् उपसर्गाद् भाषा१७१८ पक्षण परिग्रहे / विष्कारयोः / 1719 लक्षीण दर्शनानयोः / / 1740 षूदण आम्रवणे / 1741 आङः क्रन्दण् सातत्ये /