________________ / श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / - अच्च् प्राग दीर्घश्च / 2 / 1 / 104 // अणिक्यघुटि यस्वरादौ प्रत्यये-'ऽच् चः' स्यात्, प्राक्स्वरस्य दीर्घः / प्राच्यः, दधीचा / अणिक्यघुटित्येव- दध्ययति, दध्यच्यति, दध्यञ्चः / अचिति किम् ? नि मा भूत्- साध्वञ्चा // 104 // क्वसुष्मतौ च / 2 / 1 / 105 // अणिक्यघुटि य-स्वरे मतौ च प्रत्यये 'क्वस् उष्' स्यात् / विदुष्यः, विदुषा, विदुष्मान् / अणिक्यघुटीत्येव- विद्वयति, विद्वस्यति, विद्वांसः // 105 // श्वन-युवन-मघोनो डीस्यायघुट्स्वरे व उः / 2 / 1 / 106 // ङ्यां स्याद्यघुट्स्वरे च श्वनादीनाम् ‘व उः' स्यात् / शुनी, शुनः / अतियूनी, यूनः / मघोनी, मघोनः / डीस्याद्यघुट्स्वर इति किम् ? शौवनम्, यौवनम्, माघवनम् / 2 / 1 / 106 // लुगाऽऽतोऽनापः / 21107 // आपवर्जस्याऽऽतो डीस्याद्यघुट्स्वरे ‘लुक्' स्यात् / कीलालपः / हाहे देहि / अनाप इति किम् ? शालाः // 107 // अनोऽस्य / 2 / 1108 // ङीस्याधघुट्स्वरे-'नोऽस्य लुक्' स्यात् / राज्ञी, राज्ञः // 10 // ईडौ वा / 2 / 1109 // ईकारे डौ च परे- 'ऽनोऽस्य लुग्वा' स्यात् / साम्नी, सामनी / राज्ञि, राजनि // 109 // ___षादि-हन्-धृतराज्ञोऽणि / 2 / 1 / 110 // षादेरनो हनो धृतराज्ञश्चातोऽणि प्रत्यये लुक् स्यात् / औक्ष्णः, ताक्ष्णः, भ्रौणघ्नः, धार्तराज्ञः // 110 //