________________ 202 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् हि-हनोर्डवर्जे प्रत्यये परे द्वित्वे सति पूर्वस्मात् परस्य ‘हो घः' स्यात् / प्रजिघाय, जंघन्यते / अङ इति किम् ? प्राजीहयत् // 34 // जेर्गिः सन् - परोक्षयोः / 4 / 1 // 35 // सन्-परोक्षयोर्द्वित्वे सति पूर्वात् परस्य ‘जेर्गिः' स्यात् / जिगीषति, विजिग्ये / / चेः किर्वा // 41 // 36 // सन् परोक्षयोर्द्वित्वे सति पूर्वस्मात् परस्य 'चेः किर्वा' स्यात् / चिकीषति, चिचीषति; चिक्ये, चिच्ये // 36 // पूर्वस्याऽस्वे स्वरे योरियुत् / 4 / 1137 // द्वित्वे सति यः पूर्वस्तत्सम्बन्धिनोर्वोः- इकारस्य उकारस्य चाऽस्वे स्वरे परे 'इयुवौ' स्याताम् / इयेष, अरियर्ति, उवोष / अस्व इति किम् ? ईषतुः / स्वर इति किम् ? इयाज // 37 // . ऋतोऽत् / 4 / 1138 // द्वित्वे सति 'पूर्वस्य ऋतोऽत्' स्यात् / चकार // 38 // हस्वः / 4 / 1 / 39 // द्वित्वे सति 'पूर्वस्य ह्रस्वः' स्यात् / पपौ // 39 // ग-होर्जः / 4 / 1140 // द्वित्वे सति 'पूर्वयोर्ग-होर्जः' स्यात् / जगाम, जहास // 40 // द्युतेरिः / 4 / 1141 // धुतेर्द्वित्वे सति 'पूर्वस्य इ:' स्यात् / दिद्युते // 41 // द्वितीय-तुर्ययोः पूर्वो / 4 / 1 / 42 // द्वित्वे 'पूर्वयोर्वितीय-तुर्ययोर्यथासङ्ख्यं पूर्वी- आद्य-तृतीयौ' स्याताम् / चखान, जझाम // 42 //