________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 201 सस्वनिथ / रेजुः, रराजुः;-रेजिथ, रराजिथ / भेजे, बभ्राजे / भ्रसे, बभ्रासे / म्लेसे, बभ्लासे // 26 // वा श्रन्थ-ग्रन्थो न लुक् च / 4 / 1 / 27 // अनयोः 'स्वरस्यावित्परोक्षा-सेट्थवोरेर्वा स्यात्, तद्योगे च नो लुक्, न च द्विः' / श्रेयुः, शश्रन्थुः; श्रेथिथ, शश्रन्थिथ / ग्रेथुः, जग्रन्थुः; ग्रेथिथ, जग्रन्थिथ // 27 // दम्भः / 41 // 28 // दम्भः स्वरस्यावित्परोक्षायाम् ‘ए: स्यात्, न च द्विः, तद्योगे च नो लुक्' / देभुः // 28 // थे वा / 4 / 1 / 29 // . दम्भेः स्वरस्य थवि “एर्वा स्यात्, तद्योगे च नो लुक्, न च द्विः' / देभिथ, ददम्भिथ // 29 // न शस-दद-वादि-गुणिनः / 4 / 1 // 30 // शसि-दद्योर्वादीनां गुणिनां च स्वरस्य ‘एन' स्यात् / विशशसुः, विशशसिथ; दददे; ववले; विशशरुः, विशशरिथ // 30 // . हौ दः / 4 / 1 // 31 // दासंज्ञस्य हौ परे ‘ए: स्यात्, न च द्विः' / देहि, धेहि // 31 // - देर्दिगिः परोक्षायाम् / 4 / 1 // 32 // देङः परोक्षायाम् ‘दिगिः स्यात्, न च द्विः' / दिग्ये // 32 // . पिबः पीप्य् / 4 / 1 // 33 // ण्यन्तस्य पिबते. परे 'पीप्य् स्यात्, न च द्विः' / अपीप्यत् // 33 // . अड़े हि-हनो हो घः पूर्वात् / 4 / 1 // 34 //