________________ 102 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् पतिवली, अन्तर्वनी // 53 // जातेरयान्त-नित्यस्त्री-शूद्रात् / 2 / 454 // जातिवाचिनोऽदन्तात् स्त्रियां ‘डीः' स्यात्, न तु यान्त-नित्यस्त्री-शूद्रात् / कुक्कुटी, वृषली, नाडायनी, कठी / जातेरिति किम् ? मुण्डा / यान्तवर्जन किम् ? क्षत्रिया / नित्यस्त्रीवर्जनमिति किम् ? खट्वा / शूद्रवर्जनं किम् ? शूद्रा / आदित्येव - आखुः // 54 // पाक-कर्ण-पर्णवालान्तात् / 2 / 4 / 55 // पाकाद्यन्ताया जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / ओदनपाकी, आखुकर्णी, मुद्गपर्णी, गोवाली / जातेरित्येव- बहुपाका यवागूः // 55 // असत्-काण्ड-प्रान्त-शतैकाचः पुष्पात् / 2 / 4 / 56 // सदादिवर्जेभ्यः परो यः पुष्पशब्दस्तदन्ताज्जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / शङ्खपुष्पी। सदादिवर्जनं किम् ? सत्पुष्पा, काण्डपुष्पा, प्रान्तपुष्पा, शतपुष्पा, एकपुष्पा, प्राक्पुष्पा // 56 // असम्-भस्त्रा-ऽजिनक-शण-पिण्डात् फलात् / 2 / 4 / 57 // समादिवर्जेभ्यो यः फलशब्दस्तदन्ताज्जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / दासीफली / समादिप्रतिषेधः किम् ? संफला, भस्त्राफला, अजिनफला, एकफला, शणफला, पिण्डफला ओषधिः // 57 // ___ अनजो मूलात् / 2 / 4 / 58 // नवर्जात् परो यो मूलशब्दस्तदन्ताज्जातेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / दर्भमूली, शीर्षमूली / अनञ इति किम् ? अमूला // 58 // . ___धवाद् योगादपालकान्तात् / 2 / 459 // धवो-भर्ता, तद्वाचिनः सम्बन्धात् स्त्रीवृत्तेः पालकान्तशब्दवर्जात् ‘ङीः' स्यात् /