________________ 103 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् प्रठी, गणकी / धवादिति किम् ? प्रसूता / योगादिति किम् ? देवदत्तो धवः, देवदत्ता स्त्री स्वतः / अपालकान्तादिति किम् ? गोपालकस्य स्त्री गोपालिका / आदित्येव-सहिष्णोः स्त्री सहिष्णुः // 59 // पूतक्रतु-वृषाकप्यग्नि-कुसित-कुसीदादै च / 2 / 4 / 60 // एभ्यो धववाचिभ्यस्तद्योगात् स्त्रीवृत्तिभ्यो ‘डीः स्यात् , ङीयोगे चैषामैरन्तस्य' / पूतक्रतायी, वृषाकपायी, अग्नायी, कुसितायी, कुसीदायी // 60 // मनोरौ च वा / 2 / 4 / 61 // धववृत्तेर्मनोर्योगात् स्त्रीवृत्ते- 'मर्वा स्यात्, ङीयोगे चास्य औरैश्चान्तस्य' / मनावी, मनायी, मनुः // 61 // . वरुणेन्द्र-रुद्र-भव-शर्व-मृडादान् चान्तः / 2 / 4 / 62 // एभ्यो धववाचिभ्यो योगात् स्त्रीवृत्तिभ्यो ‘डीः स्यात्, ङीयोगे आन् चान्तः' / वरुणानी, इन्द्राणी, रुद्राणी, भवानी, शर्वाणी, मृडानी // 62 / / ____ मातुला-ऽऽचार्योपाध्यायाद् वा / 2 / 4 / 63 // एभ्यो धववाचिभ्यो योगात् स्त्रीवृत्तिभ्यो ‘ङीः स्यात्, ङीयोगे चा-ऽऽनन्तो वा' / मातुलानी, मातुली; आचार्यानी, आचार्टी; उपाध्यायानी उपाध्यायी // 63 / / - सूर्याद् देवतायां वा (2 / 4164 // सूर्याद् धववाचिनो योगाद् देवतास्त्रीवृत्ते 'मर्वा स्यात्, ङीयोगे चा-ऽऽनतः' / सूर्याणी, सूर्या / देवतायामिति किम् ? मानुषी सूरी // 64 // यव-यवना-ऽरण्य-हिमाद् दोष-लिप्युरु-महत्त्वे / 2 / 4 / 65 // एभ्यो यथासंख्यं दोषादौ गम्ये स्त्रियां ‘ङीः' स्यात्, ङीयोगे चा-ऽऽनन्तः' / यवानी, यवनानी लिपिः, अरण्यानी, हिमानी // 65 // आर्य-क्षत्रियाद् वा / 2 / 4 / 66 //