________________ 104 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् आभ्यां स्त्रियां 'ङीर्वा स्यात्, ङीयोगे चाऽऽनन्तः' / आर्याणी, आर्या; क्षत्रियाणी, क्षत्रिया // 66 // यत्रो डायन च वा / / 4 / 67 // यजन्तात् स्त्रियां 'डीः स्यात्, ङीयोगे च डायनन्तो वा' स्यात् / गार्गी, गाायणी // 67 // - लोहितादिशकलान्तात् / 2 / 4 / 68 // लोहितादेः शकलान्तात् यजन्तात् स्त्रियां 'डीः स्यात्, तद्योगे च डायनन्तः' / लौहित्यायनी, शाकल्यायनी // 6 // षा-ऽवटाद्वा / 2 / 4 / 69 // षान्ताद् अवटाच्च यजन्तात् स्त्रियां 'टीर्वा स्यात्, डीयोगे च डायनन्तः' / पौतिमाष्यायणी, पौतिमाष्या; आवट्यायनी, आवट्या // 69 // कौरव्य-माण्डूका-ऽऽसुरेः / 2 / 470 // एभ्यः स्त्रियां 'ङीः स्यात्, ङीयोगे च डायनन्तः' / कौरव्यायणी, माण्डूकायनी, आसुरायणी // 70 // इञ इतः / 2 / 471 // इञन्ताद् इदन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / सौतङ्गमी / इत इति किम् ? कारीषगन्ध्या // 71 // नुर्जातः / 2 / 472 // मनुष्यजातिवाचिन इदन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / कुन्ती, दाक्षी / इत इत्येवदरत् / नुरिति किम् ? तित्तिरिः / जातेरिति किम् ? निष्कौशाम्बिः // 72 // उतोऽप्राणिनश्वाऽयु-रज्ज्वादिभ्य ऊङ् / 2 / 473 // उदन्तानृजातेरप्राणिजातिवाचिनश्च स्त्रियाम् 'ऊङ् स्यात्, न तु य्वन्ताद्