________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 'चायो यङि कीः' स्यात् / चेकीतः // 86 // द्वित्वे हवः / 4 / 1 / 87 // 'द्वेगो द्वित्वविषये सस्वरान्तस्था य्वृत्' स्यात् / जुहूषति // 87 // णौ ङ-सनि / 4 / 1 / 88 // 'द्वेगः सस्वरान्तस्था उपरे सन्परे च णौ विषये य्वृत्' स्यात् / अजूहवत्, जुहावयिषति // 88 // श्वेर्वा / 4 / 1 / 89 // 'श्वेः सस्वरान्तस्था ङपरे, सम्परे णौ विषये य्वृद्वा' स्यात् / अशूशवत्, अशिश्वयत्; शुशावयिषति, शिश्वाययिषति // 89 // . वा परोक्षा-यङि / 4 / 1190 // 'श्वः सस्वरान्तस्था परोक्षायडोर्वृद्वा' स्यात् / शुशाव, शिश्वाय / शोशूयते, शेश्वीयते // 10 // प्यायः पी / 4 / 1 / 91 // 'प्यायः परोक्षा-यडोः पीः' स्यात् / आपिप्ये, आपेपीतः // 91 // तयोरनुपसर्गस्य / 4 / 1 / 92 // 'अनुपसर्गस्य प्यायेः क्त-क्तवतोः पीः' स्यात् / पीनम्, पीनवन् मुखम् / अनुपसर्गस्येति किम् ? प्रप्यानो मेघः // 12 // ___आङोऽन्धूधसोः / 4 / 1 / 93 // 'आङः परस्य प्यायेरन्धावूधसि चार्थे क्तयोः परतः पीः' स्यात् / आपीनोऽन्धुः, आपीनमूधः / अन्धूधसोरिति किम् ? आप्यानश्चन्द्रः / आङ एवेति नियमात्- प्राप्यानमूधः // 13 // स्फायः स्फी वा / 4 / 1 / 94 //