________________ 226 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वित्तं धन-प्रतीतम् / 4 / 2 / 82 // .. ‘विन्दतेः परस्य क्तस्य नत्वाभावो निपात्यते, धन-प्रतीतयोः पर्यायश्चेत्' / वित्तं धनम्, वित्तः प्रतीतः / धन-प्रतीतमिति किम् ? विनः // 82 // हु-धुटो हेधिः / 4 / 2 / 83 // ... हो(डन्ताच्च परस्य ‘हेधिः' स्यात् / जुहुधि, विद्धि // 83 // शासस-हनः शाध्येधि-जहि / 4 / 2 / 84 // शास्-अस्-हना ह्यन्तानां यथासंख्यम् 'शाध्येधि-जहयः' स्युः / शाधि, एधि, जहि // 84 // अतः प्रत्ययाल्लुक् / 4 / 2 / 85 // धातोः परो योऽदन्तः प्रत्ययस्ततः परस्य 'हे क्' स्यात् / दीव्य / अत इति किम् ? राध्नुहि / प्रत्ययादिति किम् ? पापहि // 85 // असंयोगादोः / 4 / 2 / 86 // असंयोगात् परो य उस्तदन्तात् प्रत्ययात् परस्य 'हे क्' स्यात् / सुनु / असंयोगादिति किम् ? अक्ष्णुहि / ओरिति किम् ? क्रीणीहि // 86 // वम्यविति वा / 4 / 2 / 87 // 'असंयोगात् परो य उस्तदन्तस्य प्रत्ययस्य लुग वा' स्यात्, वमादौ अविति परे / सुन्वः, सुनुवः; सुन्मः, सुनुमः / अवितीति किम् ? सुनोमि / असंयोगादित्येव- तक्ष्णुवः // 87 // __ कृगो यि च // 28 // 'कृगः परस्योतो यादौ वमि चाऽविति लुक्' स्यात् / कुर्युः, कुर्वः, कुर्मः // 8 // अतः शित्युत् / 4 / 2 / 89 //