________________ 214 %3D श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् कुर्वन् कुन्तलशैथिल्यं मध्यदेशं निपीडयन् / अङ्गेषु विलसन् भूमेर्भर्ताऽभूद् भीमपार्थिवः // 13 // (द्वितीयः पादः) आत् सन्ध्यक्षरस्य / 4 / 21 // 'धातोः सन्ध्यक्षरान्तस्याऽऽत्' * स्यात् / संव्याता, सुग्लः / धातोरित्येवगोभ्याम् // 1 // न शिति / 4 / 2 // 2 // 'सन्ध्यक्षरान्तस्य शिति विषयभूते आत् न' स्यात् / संव्ययति // 2 // व्यस्थव-णवि / 4 / 2 / 3 // 'व्यः थवि णवि च विषये आन्न' स्यात् / संविव्याय, संविव्ययिथ // 3 // स्फुर-स्फुलोपनि / 4 / 2 / 4 // अनयोः ‘सन्ध्यक्षरस्य घजि आत्' स्यात् / विस्फारः, विस्फालः // 4 // वाऽपगुरो णमि // 4 // 25 // 'अपपूर्वस्य गुरेः सन्ध्यक्षरस्य णम्याद्वा' स्यात् / अपगारमपगारम्, अपगोरमपगोरम् // 5 // दीङः सनि वा / 4 / 26 // 'दीङः सन्याद्वा' स्यात् / दिदासते, दिदीषते // 6 // यबक्ङिति / 4 / 27 // . दीडो यपि, अक्किति च विषये 'आत्' स्यात् / उपदाय, उपदाता विषयनिर्देशाद्- उपदायो वर्तते // 7 //