________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 251 इङ इणिकोश्चा-ऽज्ञानार्थयोः सनि ‘गमुः' स्यात् / अधिजिगांसते, जिगमिषति ग्रामम्, मातुरधिजिगमिषति // 25 // गाः परोक्षायाम् / 4 / 4 / 26 // इङः परोक्षाविषये 'गाः' स्यात् / अधिजगे // 26 // णौ सन्-डे वा / 4 / 4 / 27 // सन्-डे परे णौ 'इडो गा वा' स्यात् / अधिजिगापयिषति, अध्यापिपयिषति; अध्यजीगपत्, अध्यापिपत् / णाविति किम् ? अधिजिगांसते / सन्ङ इति किम् ? अध्यापयति // 27 // वाऽद्यतनी-क्रियातिपत्त्योर्गीङ् / 4 / 4 / 28 // अनयोरिङो ‘गीङ् वा' स्यात् / अध्यगीष्ट, अध्यैष्ट; अध्यगीष्यत, अध्यैष्यत // 28 // अडू धातोरादिस्तिन्यां चाऽमाङा / 4 / 4 / 29 // यस्तन्यामद्यतनी-क्रियातिपत्त्योश्च विषये 'धातोरादिरट् स्यात्, न तु माझ्योगे' / अयात्, अयासीत्, अयास्यत् / अमाउंति किम् ? मा स्म कार्षीत् / धातोरिति किम् ? प्रायाः // 29 // . एत्यस्तेवृद्धिः / 4 / 4 // 30 // इणिकोरस्तेचाऽऽदेस्तिन्यां विषये 'वृद्धिः स्यात्, न तु माङा' / आयन्, अध्यायन्, आस्ताम् / अमाझेत्येव- मा स्म ते यन् // 30 // स्वरादेस्तासु / 4 / 4 / 31 // स्वरादेर्धातोरादेरद्यतनी-क्रियातिपत्ति-शस्तनीषु विषये 'वृद्धिः स्यात्, अमाङा' / आटीत्, ऐषिष्यत्, औज्झत् / अमाडेत्येव- मा सोऽटीत् / / . स्तायशितोऽत्रोणादेरिटू / 4 / 4 / 32 //