________________ - श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् ऋभुक्षः // 79 // वोशनसो नश्चामन्त्र्ये सौ 11480 // आमन्त्र्यवृत्तेरुशनसो ‘न-लुकी' सौ परे वा स्याताम् / हे उशनन् !, हे उशन !, हे उशनः! / आमन्त्र्य इति किम् ? उशना // 8 // उतोऽनडुच्चतुरो वः / 1 / 4 / 81 // आमन्त्र्यवृत्त्योरनडुच्चतुरोरुतः सौ परे 'वः' स्यात् / हे अनड्वन् ! / हे प्रियचत्वः ! / हे अतिचत्वः ! // 81 // वाः शेषे / 1 / 4 / 82 // .. आमत्र्यविहितात्सेरन्यो घुट शेषस्तस्मिन्परे अनडुच्चतुरोरुतो 'वाः' स्यात् / अनङ्वान्, अनड्वाही / प्रियचत्वाः, प्रियचत्वारौ / शेष इति किम् ? हे अनड्वन् ! / हे प्रियचत्वः ! // 82 // . सख्युरितोऽशावैत् / 1 / 4 / 83 // सख्युरिदन्तस्य शिवर्जे शेषे घुटि परे ‘ऐत्' स्यात् / सखायौ, सखायः, सखायम् / इत इति किम् ? सख्यौ स्त्रियौ / अशाविति किम् ? अतिसखीनि / शेष इत्येव- हे सखे ! // 83 // ... ऋदुशनस-पुरुदंशोऽनेहसश्च सेहः / 1 / 4 / 84 // ऋदन्तादुशनसादेः सख्युरितश्च परस्य शेषस्य ‘सेर्डाः' स्यात् / पिता, अतिपिता, कर्ता, उशना, पुरुदंशा, अनेहा, सखा ||84 // नि दीर्घः / 1 / 485 // शेषे घुटि परे यो. नस्तस्मिन् परे स्वरस्य 'दीर्घः' स्यात् / राजा, राजानौ, राजानः, राजानम् / वनानि / कणि / शेष इत्येव- हे राजन् ! // 85 // न्स्महतोः / / 4 / 86 //