________________ 36 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् / न्सन्तस्य महतश्च स्वरस्य शेषे घुटि परे 'दीर्घः' स्यात् / श्रेयान्, श्रेयांसौ / महान्, महान्तौ // 86 // इन्-हन-पूषाऽर्यम्णः शिस्योः / / 4 / 87 // इन्नन्तस्य हनादेश्च स्वरस्य शिस्योरेव परयो-'र्दीर्घः' स्यात् / दण्डीनि, नग्वीणि, दण्डी, स्रग्वी / भ्रूणहानि, भ्रूणहा / बहुपूषाणि, पूषा / स्वर्यमाणि, अर्यमा / शिस्योरेवेति किम् ? दण्डिनौ, वृत्रहणौ, पूषणौ, अर्यमणौ // 87 // . अपः / 114188 // अपः स्वरस्य शेषे घुटि परे 'दीर्घः' स्यात् / आपः स्वापौ // 8 // नि वा 1 / 4 / 89 // अपः स्वरस्य नागमे सति घुटि परे 'दीर्घो वा' स्यात् / स्वाम्पि, स्वम्पि / बह्वाम्पि, बह्वम्पि // 89 // अभ्वादेरत्वसः सौ 1 / 4 / 90 // अत्वन्तस्याऽसन्तस्य च भ्वादिवर्जस्य शेषे सौ परे 'दीर्घः' स्यात् / भवान्, यवमान्, अप्सराः / गोमन्तं स्थूलशिरसं वेच्छन्- गोमान् स्थूलशिराः / अभ्वादेरिति किम् ? पिण्डग्रः // 90 // . क्रुशस्तुनस्तृच् पुंसि / 1 / 4 / 91 // कुशो यस्तुन् तस्य शेषे घुटि परे ‘तृच्' स्यात्, पुंसि / क्रोष्टा, क्रोष्टारौ / पुंसीति किम् ? कृशक्रोष्टूनि वनानि // 91 // ___टादौ स्वरे वा 11492 // टादी स्वरादौ परे कुशस्तुनस्तृज् वा स्यात्, पुंसि / क्रोष्ट्रा,क्रोष्टुना; क्रोष्ट्रोः, क्रोष्ट्वोः // 12 // स्त्रियाम् / / 4 / 93 //