________________ 144 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // शरेजः, शरजः; उरसिजः, उरोजः; मनसिजः, मनोजः // 26 // घु-प्रावृड्-वर्षा-शरत्-कालात् / 3 / 2 / 27 // एभ्यः परस्याः ‘सप्तम्या जे उत्तरपदे लुब् न' स्यात् / दिविजः, प्रावृषिजः, वर्षासुजः, शरदिजः, कालेजः // 27 // . अपो य-योनि-मति-चरे / 3 / 2 / 28 // अपः परस्याः ‘सप्तम्या ये प्रत्यये योन्यादौ चोत्तरपदे लुब् न' स्यात् / अप्सव्यः; अप्सुयोनिः, अप्सुमतिः, अप्सुचरः // 28 // नेन-सिद्ध-स्थे / 3 / 2 / 29 // 'इन्प्रत्ययान्ते सिद्ध-स्थयोश्चोत्तरपदयोर्न लुब् न' स्यात्, भवत्येवेत्यर्थः / स्थण्डिलवर्ती, साङ्काश्यसिद्धः, समस्थः // 29 // षष्ट्याः क्षेपे / 3 / 2 // 30 // उत्तरपदे परे क्षेपे गम्ये 'षष्ठ्या लुब् न' स्यात् / चौरस्यकुलम् // 30 // . पुत्रे वा // 3 // 2 // 31 // पुत्रे उत्तरपदे क्षेपे 'षष्ट्या लुब् वा न' स्यात् / दास्याःपुत्रः, दासीपुत्रः // 31 // पश्यद्-वाग्-दिशो हर-युक्ति-दण्डे / 3 / 2 / 32 // एभ्यः परस्याः 'षष्ट्या यथासंख्यं हरादावुत्तरपदे लुब् न' स्यात् / पश्यतोहरः वाचोयुक्तिः, दिशोदण्डः // 32 // ___ अदसोऽकसायनणोः // 3 // 2 // 33 // 'अदसः परस्याः षष्ट्या अकविषये उत्तरपदे आयनणि च परे लु न' स्यात् / आमुष्यपुत्रिका, आमुष्यायणः // 33 // देवानांप्रियः // 3 // 2 // 34 //