________________ 'श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 145 अत्र 'षष्ट्या लुब् न' स्यात् / देवानांप्रियः // 34 / / शेप-पुच्छ-लाङ्लेषु नाम्नि शुनः / 3 / 2 // 35 // शुनः परस्याः 'षष्ठ्याः शेपादावुत्तरपदे संज्ञायां लुब् न' स्यात् / शुनःशेपः, शुनःपुच्छः, शुनोलाङ्गेलः // 35 // वाचस्पति-वास्तोष्पति-दिवस्पति-दिवोदासम् / 3 / 2 // 36 // 'एते समासाः षष्ठ्यलुपि निपात्यन्ते नाम्नि' / वाचस्पतिः, वास्तोष्पतिः, दिवस्पतिः, दिवोदासः // 36 // ऋतां विद्या-योनिसम्बन्धे / 3 / 2 / 37 // 'ऋदन्तानां विद्यया योन्या वा कृते सम्बन्धे हेतौ सति प्रवृत्तानां षष्ठ्यास्तत्रैव हेतौ सति प्रवृत्ते उत्तरपदे •लुब् न' स्यात् / होतुःपुत्रः, पितुःपुत्रः, पितुरन्तेवासी / ऋतामिति किम् ? आचार्यपुत्रः / विद्यायोनिसम्बन्ध इति किम् ? भर्तृगृहम् // 37 // स्वसृ-पत्योर्वा // 3 // 2 // 38 // 'विद्यायोनिसम्बन्धनिमित्तानाम् ऋदन्तानां षष्ठ्याः स्वसृपत्योरुत्तरपदयोयोनिसम्बन्धनिमित्तयोर्लुब् वा न' स्यात् / होतुःस्वसा, होतृस्वसा; स्वसुःपतिः, स्वसृपतिः / विद्यायोनिसम्बन्ध इत्येव- भर्तृस्वसा, होतृपतिः // 38 // . आ द्वन्द्वे // 3 // 2 // 39 // 'विधायोनिसम्बन्धनिमित्तानाम् ऋदन्तानां यो द्वन्द्वस्तस्मिन् सत्युत्तरपदे पूर्वपदस्याऽऽत्' स्यात् / होतापोतारौ, मातापितरौ / ऋतामित्येव- गुरुशिष्यौ / विद्यायोनिसम्बन्ध इत्येव- कर्तृकारयितारौ // 39 // .. पुत्रे / 3 / 2 / 40 // 'पुत्रे उत्तरपदे विद्यायोनिसम्बन्धनिमित्तानाम् ऋदन्तानां द्वन्द्वे आः'