________________ 48 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् भ्वादेर्धातोर्यो र-वौ तयोः परयोस्तस्यैव 'नामिनो दीर्घः' स्याद् व्यञ्जने हूर्छा, आस्तीर्णम्, दीव्यति / भ्वादेरिति किम् ? कुर्कुरीयति, दिव्यति // 63 / पदान्ते / 2 / 1 / 64 // पदान्तस्थयोवदिर्वोः परयोभ्वदि मिनो 'दीर्घः' स्यात् / गीः, गीरर्थः पदान्त इति किम् ? गिरः, लुवः // 64 // __न यि तद्धिते / 2 / 1 / 65 // यादौ तद्धिते परे यौ झै तयोः परयो मिनो 'दी? न' स्यात् / धुर्यः / यीति किम् ? गीर्वत् / तद्धित इति किम् ? गीर्यति, गीर्यते // 65 // कुरुच्छुरः / 2 / 1 // 66 // कुरुच्छुरो मिनो रे परे ‘दी? न' स्यात् / कुर्यात्, छुर्यात् / कुर्वित्युकार किम् ? कुरत् शब्दे- कूर्यात् // 66 // मो नो म्वोश्च / 2 / 1 / 67 // मन्तस्य धातोरन्तस्य पदान्तस्थस्य म्वोश्च परयोनः स्यात् / प्रशान्, प्रशाभ्याम्, जङ्गन्मि, जङ्गन्वः // 67 / / संस्-ध्वंस्-क्वस्सनडुहो दः / 2 / 1 / 68 // संस्-ध्वंसोः क्वस्प्रत्ययान्तस्य च सन्तस्य अनडुहश्च पदान्तस्थस्य ‘दः' स्यात् उखानद्, पर्णध्वद्, विद्वत् कुलम् / स्वनडुद् / क्वस्सिति द्विसकारपाठादि मा भूत्- विद्वान् // 68 // ऋत्विज्-दिश-दृश्-स्पृश्-सज्-दधृषुष्णिहो गः / 2 / 1 / 69 // एषां पदान्तस्थानाम् ‘गः' स्यात् ।ऋत्विग, दिग्, दृग, अन्यादृग, घृतस्पृग स्रग्, दधृग, उष्णिम् // 69 // न शो वा / 2 / 170 // भ्याम्, जसंस्-ध्वंम् च सन्तस्य अ