________________ 171 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् क्रमोऽनुपसर्गात् / 3 // 3 // 47 // अविद्यमानोपसर्गात् क्रमतेः 'कर्त्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / क्रमते, कामति / अनुपसर्गादिति किम् ? अनुक्रामति // 47 // वृत्ति-सर्ग-तायने / 3 / 3 / 48 // वृत्तिः-अप्रतिबन्धः, सर्गः- उत्साहः, तायनम्- स्फीतता, एतद्वृत्तेः क्रमेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / शास्त्रेऽस्य क्रमते बुद्धिः, सूत्राय क्रमते, क्रमन्तेऽस्मिन् योगाः // 48 // परोपात् / 3 / 3 / 49 // आभ्यामेव परात् क्रमेवृत्त्याद्यर्थात् 'कर्त्तर्यात्मनेपदम् ' स्यात् / पराक्रमते, उपक्रमते / परोपादिति किम् ? अनुक्रामति / वृत्त्यादावित्येव - पराक्रामति // 49 // वेः स्वार्थे / 3 / 3 / 50 // स्वार्थः- पादविक्षेपः, तदर्थाद् विपूर्वात् क्रमेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / साधु .विक्रमते गजः / स्वार्थ इति किम् ? गजेन विक्रामति // 50 // प्रोपादारम्भे / 3 / 3 / 51 // आरम्भार्थात् प्रोपाभ्यां परात् क्रमेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / प्रक्रमते, उपक्रमते भोक्तुम् / आरम्भ इति किम् ? प्रक्रामति यातीत्यर्थः / / 51 // आङो ज्योतिरुद्गमे / 3 / 3 / 52 // आङः परात् क्रमेश्चन्द्राद्युद्गमार्थात् ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / आक्रमते चन्द्रः सूर्यो वा / ज्योतिरुद्गम इति किम् ? आक्रामति बटुः कुतुपम्, धूम आक्रामति // 52 // दागोऽस्वाऽऽस्यप्रसार-विकासे / 3 / 3 // 53 //