________________ 170 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // कर्तृस्थामूर्ताऽऽप्यात् / 3 / 3 / 40 // कर्तृस्थममूर्तं कर्म यस्य तस्मानियः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / श्रमं विनयते / कर्तृस्थेति किम् ? चैत्रो मैत्रस्य मन्युं विनयति / अमूर्तेति किम् ? गईं विनयति / आप्येति किम् ? बुद्ध्या विनयति // 40 // शदेः शिति // 3 // 3 // 41 // . शिद्विषयात् शदेः 'कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / शीयते / शितीति किम् ? शत्स्यति // 41 // म्रियतेरद्यतन्याशिषि च / 3 / 3 / 42 // अतोऽद्यतन्याशीविषयाच्छिद्विषयाच 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अमृत; मृषीष्ट, म्रियते / अद्यतन्याशिषि चेति किम् ? ममार // 42 // क्यषो नवा / 3 / 3 / 43 // क्यक्षन्तात् 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / निद्रायति, निद्रायते // 43 // युद्भ्योऽद्यतन्याम् // 3 // 3 // 44 // धुतादिभ्योऽद्यतनीविषये 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / व्यधुतत्, व्यद्योतिट; अरुचत्, अरोचिष्ट / अद्यतन्यामिति किम् ? द्योतते // 44 // वृद्भ्यः स्य-सनोः / 3 / 3 / 45 // वृदादेः पञ्चतः स्या-ऽऽदौ प्रत्यये सनि च विषये 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / वर्त्यति, वर्तिष्यते; विवृत्सति, विवर्तिषते / स्य-सनोरिति किम् ? वर्तते // 45 // कृपः श्वस्तन्याम् // 3 // 3 // 46 // कृपेः श्वस्तनीविषये 'कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्यात् / कल्पतासि, कल्पितासे // 46 //