________________ 172 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् // स्वाऽऽस्यप्रसार - विकासाभ्यामन्यार्थाद् आपूर्वाद् दागः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / विद्यामादत्ते / स्वास्यादिवर्जनं किम् ? उष्ट्रो मुखं व्याददाति, कूलं व्याददाति // 53 // नु-प्रच्छः / 3 / 3 / 54 // .. आयूर्वान्नौतेः प्रच्छेश्च 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / आनुते शृगालः, आपृच्छते गुरुन् // 54 // गमेः क्षान्तौ / 3 / 3 / 55 // कालहरणार्थाद् गमयतेरापर्वात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / आगमयते गुरुम् - कञ्चित् कालं प्रतीक्षते / क्षान्ताविति किम् ? विद्यामागमयति // 55 // ह्वः स्पढें // 3 // 356 // आयूर्वाद् ह्वयतेः स्प? गम्ये 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / मल्लो मल्लमाह्वयते / स्पर्द्ध इति किम् ? गामाह्वयति // 56 / / सं-नि-वेः / 3 / 3 / 57 // एभ्यो ह्वयतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संह्वयते, निह्वयते, विह्वयते // 57 // उपात् / 3 / 3 / 58 // उपाद् ह्वयतेः 'कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / उपह्वयते // 58 // यमः स्वीकारे / 3 / 3 / 59 // उपाद् यमेः स्वीकारार्थात् 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / कन्यामुपयच्छते, उपायंस्त महास्त्राणि / विनिर्देशः किम् ? शाटकानुपयच्छति // 59 // देवाऽर्चा-मैत्री-सङ्गम-पथिकर्तृक-मन्त्रकरणे स्थः / 3 / 3 / 60 // एतदर्थाद् उपपूर्वात् तिष्ठतेः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / देवार्चा -जिनेन्द्रमुपतिष्ठते / मैत्री - रथिकानुपतिष्ठते / सङ्गमः - यमुना गङ्गामुपतिष्ठते /