________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 173 पन्थाः कर्ता यस्य तत्र - मुनमुपतिष्ठते पन्थाः / मन्त्रः करणं यस्य - ऐन्द्रा गार्हपत्यमुपतिष्ठते // 30 // वा लिप्सायाम् / 3 / 3 / 61 // उपात् स्थो लिप्सायां गम्यमानायाम् ‘कर्तर्यात्मनेपदं वा' स्याद् / भिक्षुतृकुलमुपतिष्ठते, उपतिष्ठति वा // 61 // उदोऽनूव॑हे / 3 / 3 / 62 // अनू; या चेष्टा तदर्थाद् उत्पूर्वात् स्थः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / मुक्तावुत्तिष्ठते / अनूति किम् ? आसनादुत्तिष्ठति / ईहेति किम् ? ग्रामाच्छतमुत्तिष्ठति // 62 // .. सं-वि-प्रा-ऽवात् / 3 / 3 / 63 // एभ्यः परात् स्थः ‘कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / संतिष्ठते, वितिष्ठते, प्रतिष्ठते, अवतिष्ठते // 63 // ज्ञीप्सा-स्थेये / 3 / 3 / 64 // ज्ञीप्सा-आत्मप्रकाशनम्, स्थेयः-सभ्यः, जीप्सायां स्थेयविषयार्थे च वर्तमानात् स्थः 'कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / तिष्ठते कन्या च्छात्रेभ्यः, त्वयि तिष्ठते विवादः // 64 // प्रतिज्ञायाम् // 3 // 3 // 65 // अभ्युपगमार्थात् स्थः ‘कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / नित्यं शब्दमातिष्ठते // 65 // समो गिरः / 3 / 3 / 66 // संपूर्वाद् गिरः प्रतिज्ञार्थात् 'कर्त्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / स्याद्वादं सङ्गिरते // 66 // अवात् / 3 / 3 / 67 // अवाद् गिरः ‘कर्तर्यात्मनेपदम्' स्यात् / अवगिरते // 67 //