________________ - श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 261 - अरोदः // 10 // ' संपरेः कृगः स्सट् / 4 / 4 / 91 // आभ्यां परस्य 'कृग आदिः स्सट्' स्यात् / संस्करोति कन्याम्, परिकरोति // 91 // उपाद् भूषा-समवाय-प्रतियत्न-विकार-वाक्याऽध्याहारे 4492 // उपात् परस्य 'कृगो भूषादिष्वर्थेष्वादिस्सट्' स्यात् / कन्यामुपस्करोति, तत्र न उपस्कृतम्, एधोदकमुपस्कुरुते, उपस्कृतं भुङ्क्ते, सोपस्कारं सूत्रम् // 12 // किरो लवने / 4 / 4 / 93 // उपात् 'किरतेः सडादिः स्यात्, लवनविषयार्थश्चेत्' / उपस्कीर्य मद्रका लुनन्ति / लवन इति किम् ? उपकिरति पुष्पम् // 13 // - प्रतेश्च वधे / 4 / 4 / 94 // प्रतेरुपाच्य 'किरतेहिंसायां विषयेऽर्थे वा, सडादिः' स्यात् / प्रतिस्कीर्णम्, उपस्कीर्णम्, वा ह ते वृषल भूयात्, प्रतिचस्करे नखैः / वध इति किम् ? प्रतिकीर्ण बीजम् // 14 // अपाचतुष्पात्-पक्षि-शुनि हृष्टा-ऽन्ना-ऽऽश्रयाऽर्थे / 4 / 4 / 95 // अपात् 'किरतेः चतुष्पदि पक्षिणि शुनि च कर्तरि यथासङ्ख्यं हृष्टेऽत्रार्थिनि आश्रयार्थिनि स्सडादिः' स्यात् / अपस्किरते गौहृष्टः, कुक्कुटो भक्ष्यार्थी, आश्रयार्थी वा श्वा // 95 // ___. वौ विष्किरो वा / 4 / 4 / 96 // पक्षिणि वाच्ये 'विकिरतेः स्सड् वा निपात्यते' / विष्किरः, विकिरो वा पक्षी // 16 //