________________ 288 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 1246 मींच् हिंसायाम् / 1269 घूरैङ् 1270 जूरैचिः 1247 रीच् स्रवणे / जरायाम् / 1248 लींच् श्लेषणे / 1271 धूरैङ् 1272 गूरैचि गतौ / 1249 डीच् गतौ / 1273 शूरैचि स्तम्भे / .. 1250 ब्रीच् वरणे / 1274 तूरैचि त्वरायाम् / // वृत स्वादिः // घूरादयो हिंसायां च / |1275 चूरैचि दाहे / 1276 किशिच् उपतापे / 1251 पीङ्च् पाने / 1277 लिशिंच अल्पत्वे / 1252 ईङ्च् गतौ / 1278 काशिच दीप्तौ / 1253 प्रींच् प्रीती / 1279 वाशिच् शब्दे / 1254 युजिंच् समाधौ / 1255 सृजिंच विसर्गे // इति आत्मनेभाषाः // 1256 वृतूचि वरणे / 1257 पदिच् गतौ / 1280 शकींच् मर्षणे / 1258 विदिंच सत्तायाम् / 1281 शुचुगैच् पूतिभावे / 1259 खिदिच् दैन्ये / 1282 रजींच् रागे / 1260 युधिंच सम्प्रहारे / 1283 शपींच् आक्रोशे / 1261 अनो रुधिंच कामे / 1284 मृषीच तितिक्षायाम् / 1262 बुधिं 1263 मनिंच ज्ञाने / | 1285 णहींच् बन्धने / 1264 अनिच् प्राणने / // उभयतोभाषाः // 1265 जनैचि प्रादुर्भावे / // इति दिवादयश्चितो धातवः // 1266 दीपैचि दीप्तौ / 1267 तपिंच ऐश्वर्ये वा। 1286 धुंगट् अभिषवे / 1268 पूरैचि आप्यायने / 1287 पिंगट् बन्धने /