________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् मनः / 2 / 4 / 14 // मन्नन्तात् स्त्रियां ‘डीन' स्यात् / सीमानौ // 14 // ताभ्यां वा-ऽऽप् डित् / 2 / 4 / 15 // मन्नन्ताद् बहुव्रीहेश्वाऽनन्तात् स्त्रियाम् ‘आप वा स्यात्, स च डित्' / सीमे, सुपर्वेः पक्षे-सीमानौ, सुपर्वाणी // 15 // अजादेः / 2 / 4 / 16 // अजादेस्तस्यैव स्त्रियाम् 'आप' स्यात् / अजा, बाला, ज्येष्ठा, क्रुञ्चा // 16 // ऋचि पादः पात्पदे / 2 / 4 / 17 // कृतपाद्भावपादस्य ऋच्यर्थे 'पात्पदेति निपात्यते' / त्रिपदा, त्रिपाद्, गायत्री / ऋचीति किम् ? द्विपात्, द्विपदी ||17|| __ आत / 2 / 4.18 // अकारान्तात् स्त्रियाम् 'आप' स्यात् / खट्वा, या, सा // 18 // गौरादिभ्यो मुख्यान्कीः / 2 / 4 / 19 // गौरादिगणान्मुख्यात् स्त्रियां ‘डीः' स्यात् / गौरी, शबली / मुख्यादिति किम् ? बहुनदा भूमिः // 19 // अणजेयेकण-नञ्-स्न-टिताम् / 2 / 4 // 20 // अणादीनां योऽत् तदन्तात्तेषामेव स्त्रियां 'डीः' स्यात् / औपगवी, बैदी, सौपर्णेयी, आक्षिकी, स्त्रैणी, पौंस्नी, जानुदनी // 20 // वयस्यनन्त्ये / 2 / 4 / 21 // .. / कालकृता शरीरावस्था वयस्तस्मिन्नचरमे वर्तमानादकारान्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / कुमारी, किशोरी, वधूटी / अनन्त्य इतिं किम् ? वृद्धा // 21 // द्विगोः समाहारात् / 2 / 4 / 22 //