________________ 97 त सर्वतो मानं पा स्त्रियां ‘डोः' स्यात् / / पञ्चाश्या / तद्धितलुक. श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् समाहारद्विगोरदन्तात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / पञ्चमूली, दशराजी // 22 // परिमाणात् तद्धितलुक्यबिस्ताऽऽचितकम्बल्यात् / 2 / 4 // 23 // परितः सर्वतो मानं परिमाणं रूढेः प्रस्थादि, बिस्तादिवर्जपरिमाणाताद् द्विगोरदन्तात् तद्धितलुकि स्त्रियां 'डीः' स्यात् / द्वाभ्यां कुडवाभ्यां क्रीता द्विकुडवी / परिमाणादिति किम् ? पञ्चभिरश्वः क्रीता पञ्चाश्वा / तद्धितलुकीति किम् ? द्विपण्या / बिस्तादिवर्जनं किम् ? द्विबिस्ता, द्व्याचिता, द्विकम्बल्या // 23 // काण्डात् प्रमाणादक्षेत्रे / 2 / 4 / 24 // प्रमाणवाचिकाण्डान्तादक्षेत्रविषयाद् द्विगोस्तद्धितलुकि स्त्रियां ‘ङीः' स्यात् / आयामः प्रमाणम्, द्वे काण्डे प्रमाणमस्याः द्विकाण्डी रज्जुः / प्रमाणादिति किम् ? द्विकाण्डा शाटी / अक्षेत्र इति किम् ? द्विकाण्डा क्षेत्रभक्तिः // 24 // पुरुषाद् वा / 2 / 4 // 25 // प्रमाणवाचिपुरुषान्ताद् द्विगोस्तद्धितलुकि स्त्रियां ‘ीर्वा' स्यात् / द्विपुरुषी द्विपुरुषा परिखा / तद्धितलुकीत्येवः पञ्च पुरुषाः समाहृताः पञ्चपुरुषी // 25 // रेवत-रोहिणाद् भे / 2 / 4 / 26 // आभ्यां नक्षत्रवृत्तिभ्यां स्त्रियां 'डीः' स्यात् / रेवती, रोहिणी, रेवत्यां जाता रेवती / भ इति किम् ? रेवता // 26 // नीलात् प्राण्यौषध्योः // 2 // 4 // 27 // प्राणिन्यौषधौ च नीलात् स्त्रियां 'डीः' स्यात् / नीली गौः, नीली औषधिः, नीलाऽन्या // 27 // क्ताच नाम्नि वा / 2 / 4 / 28 // नीलगत् क्तान्ताच्च स्त्रियां संज्ञायां 'डीर्वा' स्यात् / नीली, नीला; प्रवृद्धविलूनी, प्रवृद्धविलूना // 28 //