________________ 98 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् केवल-मामक-भागधेय-पापा-ऽपर-समाना-ऽऽर्यकृत-सुम गल-भेषजात् / 2 / 4 / 29 // एभ्यो नाम्नि स्त्रियां ‘ङीः' स्यात् / केवली ज्योतिः, मामकी, भागधेयी, पापी, अपरी, समानी, आर्यकृती, सुमङ्गली, भेषजी / नाम्नीत्येव-केवला // 29 // भाज-गोण-नाग-स्थल-कुण्ड-काल-कुश-कामुक-कट-कबरात् पक्वा-ऽऽवपन-स्थूला-ऽकृत्रिमा-ऽमत्र-कृष्णा-ऽऽयसी रिंसु-श्रीणि-केशपाशे / 2 / 4 / 30 // एभ्यो यथासंख्यं पक्वादिष्वर्थेषु स्त्रियां 'नाम्नि ङीः' स्यात् / भाजी पक्वा चेत्, भाजाऽन्या / गोणी आवपनम्, गोणाऽन्या / नागी स्थूला, नागाऽन्या। स्थली अकृत्रिमा, स्थलाऽन्या / कुण्डी अमत्रम्, कुण्डाऽन्या / काली कृष्णा, कालाऽन्या / कुशी आयसी, कुशाऽन्या / कामुकी रिरंसुः, कामुकाऽन्या / कटी श्रोणिः, कटाऽन्या / कबरी केशपाशः, कबराऽन्या // 30 // नवा शोणादेः / 2 / 4 // 31 // शोणादेः स्त्रियां ‘डीर्वा' स्यात् / शोणी, शोणा; चण्डी, चण्डा // 31 // इतोऽक्त्यर्थात् // 2 // 4 // 32 // क्त्यर्थप्रत्ययान्तवर्जाद् इदन्तात् स्त्रियां 'ङीर्वा स्यात् / भूमी, भूमिः; धूली, धूलिः / अक्त्यादिति किम् ? कृतिः, अकरणिः, हानिः // 32 // पद्धतेः / 2 / 4 / 33 // अस्मात् स्त्रियां 'ङीर्वा' स्यात् / पद्धती, पद्धतिः // 33 / / शक्तेः शस्त्रे / 2 / 4 // 34 // अस्माच्छस्त्रे स्त्रियां 'डीर्वा' स्यात् / शक्ती, शक्तिः / शस्त्र इति किम् ? शक्तिः- सामर्थ्यम् // 34 //