________________ श्रीसिद्भहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् वा पादः / 2 / 4 // 6 // बहुव्रीहेस्तद्धेतुकपाच्छब्दान्तात् स्त्रियां ‘ङीर्वा' स्यात् / द्विपदी, द्विपात् / बहुव्रीहिनिमित्तो यः पाद् इति विशेषणादिह न स्यात्- पादमाचष्टे क्विपि पाद्, त्रयः पादोऽस्याः- त्रिपात् // 6 // ऊनः / 2 / 47 // ऊधन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / कुण्डोध्नी // 7 // ___ अशिशोः // 2 // 48 // अशिशु इति बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / अशिश्वी // 8 // संख्यादेर्हायनाद् वयसि / 2 / 4 / 9 // संख्यादेर्हायनान्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां “डीः स्यात्, वयसि गम्ये' / त्रिहायणी, चतुर्हायणी वडवा / वयसीति किम् ? चतुर्हायना शाला // 9 // दाम्नः / 2 / 4 / 10 // संख्यादेमन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'डीः' स्यात् / द्विदाम्नी / संख्यादेरित्येवउद्दामानं पश्य // 10 // . अनो वा / 2 / 4 / 11 // अनन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां ‘ङीर्वा' स्यात् / बहुराइयो, बहुराजे, बहुराजानौ // 11 // नाम्नि / 2 / 4 / 12 // अन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां 'संज्ञायां नित्यं ङीः' स्यात् / अधिराज्ञी, सुराज्ञी नाम ग्रामः // 12 // . नोपान्त्यवतः / 2 / 4 / 13 // यस्योपान्त्यलुग् नास्ति तस्मादन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां ‘डीन' स्यात् / सुपर्वा, सुशर्मा / उपान्त्यवत इति किम् ? बहुराज्ञी / / 13 / /