________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 245 गा-पा-स्था-सा-दा-मा-हाकः / 4 / 3 / 96 // एषाम् ‘क्लित्याशिष्येः' स्यात् / गेयात्, पेयात्, स्थेयात्, अवसेयात्, देयात्, धेयात्, मेयात्, हेयात् // 16 // ईर्व्यञ्जनेऽयपि // 43 // 97 // गादेर्यवर्जे क्लित्यशिति व्यञ्जनादौ 'ई:' स्यात् / गीयते, जेगीयते, पीयते, स्थीयते, अवसीयते, दीयते, धीयते, मीयते, हीनः / व्यञ्जन इति किम् ? तस्थुः / अयपीति किम् ? प्रगाय // 97 // घ्रा-मोर्यङि / 4 / 3 / 98 // घ्रा-मोर्यङि 'ई:' स्यात् / जेघ्रीयते, देध्मीयते // 98 // . हनो नीर्वधे / 4 / 3 / 99 // हन्तेर्वधार्थस्य यङि 'नीः' स्यात् / जेनीयते / वध इति किम् ? गतौजबन्यते // 19 // णिति घात् / 4 / 3 / 100 // जिति णिति च परे ‘हन्तेर्घात्' स्यात् / घातः, घातयति // 10 // जि-णवि घन् / 4 / 3 / 101 // जौ णवि च परे 'हन्तेर्घन्' स्यात् / अघानि, जघान // 101 // .. नशेर्नेश वाऽङि / 4 / 3 / 102 // नशेरङि 'नेश् वा' स्यात् / अनेशत्, अनशत् // 102 // श्वयत्यसू-वच-पतः श्वा-ऽऽस्थ-वोच-पप्तम् / 4 / 3 / 103 // एषामङि 'यथासङ्ख्यं श्वादयः' स्युः / अश्वत्, आस्थत्, अवोचत्, अपप्तत् // 103 // शीङ ए: शिति / 4 / 3 / 104 //