________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् 57 नित्याकर्मणाञ्च नीखाद्यदिह्वाशब्दायक्रन्दिवर्जानां धातूनामणिकर्ता स णौ सति 'कर्म' स्यात् / गमयप्ति चैत्रं ग्रामम्, बोधयति शिष्यं धर्मम्, भोजयति बटुमोदनम्, जल्पयति मैत्रं द्रव्यम्, अध्यापयति बटुं वेदम्, शाययति मैत्रं चैत्रः / गत्यर्थादीनामिति किम् ? पाचयत्योदनं चैत्रेण मैत्रः / न्यादिवर्जनं किम् ? नाययति भारं चैत्रेण, खादयत्यपूपं मैत्रेण, आदयत्योदनं सुतेन, ह्वाययति चैत्रं मैत्रेण, शब्दाययति बटुं मैत्रेण, क्रन्दयति मैत्रं चैत्रेण // 5 // भक्षेहिँसायाम् // 2 // 26 // भक्षेहिँसार्थस्यैवाणिकर्ता णौ 'कर्म' स्यात् / भक्षयति सस्यं बलीवान् मैत्रः / हिंसायामिति किम् ? भक्षयति पिण्डी शिशुना // 6 // वहेः प्रवेयः / 2 / 27 // वहेरणिक्कर्ता प्रवेयो णौ 'कर्म' स्यात् / वाहयति भारं बलीवर्दान् मैत्रः / प्रवेय इिति किम् ? वाहयति भारं मैत्रेण // 7 // ह-क्रोर्नवा / 2 / 2 / 8 // हक्रोरणिक्कर्ता णौ 'कर्म वा' स्यात् / विहारयति देशं गुरुं गुरुणा वा, आहारयत्योदनं बालं बालेन वा, कारयति कटं चैत्रं चैत्रेण वा // 8 // दृश्यभिवदोरात्मने / 22 / 9 // दृश्यभिवदोरात्मनेपदविषयेऽणिकर्ता णौ 'कर्म वा' स्यात् / दर्शयते राजा भृत्यान् भृत्यैर्वा, अभिवादयते गुरुः शिष्यं. शिष्येण वा / आत्मन इति किम् ? दर्शयति रूपतर्क रूपम् // 9 // नाथः / 2 / 2 / 10 // आत्मनेपदविषयस्य नाथो व्याप्यम् 'कर्म वा' स्यात् / सर्पिषो नाथते, सर्पिथिते / आत्मन इत्येव- पुत्रमुपनाथति पाठाय // 10 //