________________ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् खि-ति-खी-तीय उर् // 14 // 36 // खि-ति-खी-तीसम्बन्धिनो यात्परयोङसिङसोरुर् स्यात् / सख्युः, सख्युः / पत्युः, पत्युः। सखायं पतिं चेच्छतः सख्युः 2, पत्युः 2 / य इति किम् ? अतिसखेः, अधिपतेः // 36 // ऋतो डर 114 // 37 // ऋतः परयोः सि-सो-'ईर्' स्यात् / पितुः, पितुः // 37 // तृ-स्वसृ-नप्तृ-नेष्ट-त्वष्ट-क्षतृ-होतृ-पोतृ-प्रशास्त्रो घुट्यार् // 1 // 4 // 38 // तृच्-तृन्नन्तस्य स्वनादीनां च ऋतो घुटि परे 'आर्' स्यात् / कर्तारम्, कर्तारौर, कर्तारः / स्वसारम्, नप्तारम्, नेष्टारम्, त्वष्टारम्, क्षत्तारम्, होतारम्, पोतारम्, प्रशास्तारम् / घुटीति किम् ? कर्तृ कुलं पश्य // 38 // अझै च // 14 // 39 // ऋतो डी घुटि च परे 'अर्' स्यात् / नरि / नरम् // 39 // मातुर्मातः पुत्रेऽहे सिनाऽऽमन्त्र्ये / / 4 / 40 // आमन्त्र्ये पुढे वर्तमानस्य मातृशब्दस्य सिना सह 'मातः' स्यात्, अर्हेप्रशंसायाम् / हे गार्गीमात ! / पुत्र इति किम् ? हे मातः ! हे गार्गीमातृके वत्से ! / अर्ह इति किम् ? अरे गार्गीमातृक ! // 40 // हस्वस्य गुणः / 1 / 4 / 41 // आमव्यार्थवृत्तेर्हस्वान्तस्य सिना सह 'गुणः' स्यात् / हे पितः !, हे मुने ! // 41 // .. एदापः // 1 // 4 // 42 // आमन्त्र्यार्यवृत्तेराबन्तस्य सिना सह एत्' स्यात् / हे माते !, हे बहुराजे ! // 42 // नित्यदिन-द्विस्वराऽम्बार्थस्य हस्वः // 14 // 43 //